हे मेघ
अब न तरसाओ
झुलस रहा है तन मन
झुलस रही है प्रकृति
जीव निर्जीव से
लगते धरा पर
हवाएं भी अब गर्म हैं
केवल तुमसे है आस
अन्तर्मन में विश्वास
तुम जरूर आओगे
इस धरा को तृप्त करने
सूखे कण्ठ को तर करने
मौसम की बहार लेकर
पेड़ों का उपहार बनकर
बिलकुल घने काले रूप में
उमड़ते घुमड़ते, बल खाते
जल को समेटकर
आओगे तुम
यह विश्वास है सबका
हमें पता है
विश्वास टूटता नहीं कभी
तुम बरसोगे झमाझम
कभी रिमझिम
बस एक ही पुकार है
देर न करो
जल्दी से आ जाओ।
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