आत्महत्या

आत्महत्या एक साहस है कायरतापूर्ण कृत्य का

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13 Jun '24
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राष्ट्र ग्रहस्थ संत भय्यु महाराज ने आज ही के दिन 13 जून 2018 को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी ! क्या हम इतने कायर हो गए है कि आत्महत्या कर ले या हम इतने बड़े साहसी हो गए है कि ऐसे कायरता वाला कृत्य कर बैठे ! उत्तर खोजे नही मिलता कि आखिर क्यों कोई इतना बड़ा कदम उठा लेता है ! माना कि कुछ बाते हमारे वश में नही होती तो क्या हम इतने भीरु बन जाये कि जिंदगी की जंग न लड़ सके !

 Somebody should be there to handle duties of family ….. I am leaving to much stressed out , fed up.  इतना लिख कर गोली दाग ली ! वर्षो की  जिंदगी को बस चंद लाइन में समेट कर इहलीला समाप्त कर ली ! इतने बड़े ज्ञानी , ध्यानी , आध्यात्मिक गुरु अपनी आत्मा को न मना सके कि चल ठीक है चलता है सब , आज नही तो कल ठीक होगा ! अब बेचारे रोज तिल तिल मरते मरीज , घुट घुट कर जिन्दगी जीते आम लोगो की जिजीविषा की मिशाल देना होगी कि वे कैसे जी रहे है ! अब तरह तरह कि बाते सामने आएगी कि – पारिवारिक परेशानी थी , राजनैतिक परेशानी थी , कोई मानसिक परेशानी थी , कुल मिलकर दर असल आत्मा परेशां थी , सो समाधान खोजा कि आत्मा की ही हत्या कर दी जाये , अब अनंत काल से सुनते आ रहे कि आत्मा तो अजर अमर है मरता केवल शरीर है , आत्मा को मारने की फ़िराक में शरीर को मार डाला जो किसी का बेटा था , किसी का बाप , किसी का पति , किसी का भाई ! आत्मा का किसी से कोई रिश्ता नही है ! आत्मा का रिश्ता केवल परमात्मा से है जो उसी में विलीन हो जाती है ! तकलीफ बेचारे ये सारे रिश्ते उठाते है ! 

कोई डेढ़ दशक पहले में हाई स्कूल बडवानी में पढता था ! जुलाई अगस्त का वक्त था , कई दिनों से मुसलाधार बारिश हो रही थी ! मै तीन दिन से रोज ही बस में बैठकर रणगांव तक जाता वहां एक बड़े तालाब के बेक वाटर के कारण एक नाला अक्सर पुरे उफान पर मिलता सो बसे वापस वही से लौट जाती ! फिर एक दिन मेरे मामाजी साथ आये , उन्हें बडवानी के निकट से ही मामी को लिवाने जाना था ! हमने जैसे तैसे पुलिया पार किया , बडवानी पहुचे ! मामा मेरी साइकिल लेकर मामी को लेने चले गए ! मै मेरे होस्टल में ही आराम करता रहा ! मामा के स्वभाव के बारे में बता दू , बड़े शालीन , धीर गंभीर और हलके फुल्के मजाकिया लहजे के जिंदादिल इंसान थे ! मैंने शायद ही उन्हें किसी बात पे गुस्सा करते देखा हो ! मुझे मजाक करके अक्सर चिड़ा दिया करते थे ! वे दोपहर में बेहद जल्दी में आये , मुझसे  कहा – मुझे घर छोड़ दो ! मैंने कहा- मै अभी ही तो घर से आया हूँ , और मै तुन्हें घर कैसे छोड़ दू ? मै उनकी आत्मा की आवाज़ नही सुन पाया जो कह रही थी – मै बेहद टूट चुकी हूँ , मुझसे चला न जायेगा , तुम मुझे घर तक छोड़ दो ! जैसे तैसे उन्होंने खुद को को संभाल कर कहा – मुझे बस स्टैंड तक छोड़ दो ! मैंने प्रश्न किया – मामी को लेकर नही आये ? उन्होंने बेमन से थकन भरी आवाज़ में कहा – माँ को अस्पताल दिखाना है , मै एक दो दिन में उन्हें लेकर आऊंगा फिर तुम्हारी मामी को भी साथ ही लेकर जाऊंगा ! उनके चेहरे पर बड़ी गहरी निराशा मुझे नज़र आ रही थी , लेकिन मेरी उम्र उतनी छोटी थी कि मै उनके मनोआवेग का अंदाज़ा न लगा सका ! दुसरे दिन मै स्कूल से लौटा था कि मेरे गांव से मेरे एक नजदीकी रिश्तेदार आये ! उन्होंने कहा – तुम्हे घर बुलाया है ! मै हैरत में पड़ गया कि अभी कल ही मै घर से बड़ी मुश्किल से ३ दिन के प्रयास से आया हूँ आज फिर मुझे घर क्यों बुलाया होगा ! हालाँकि मेरे मन में  कुछ कुछ हलके से किसी अनहोनी का अंदेशा होने लगा था कि कोई न कोई गंभीर बात होगी ! मै मेरे परिवार के अत्यधिक निकट हूँ सो मन में तरह तरह कि बाते आने लगी ! मै बार बार मेरे परिचित को पुछु कि क्या हो गया कुछ बताओगे ! फिर हम होस्टल से पैदल पैदल बस स्टैंड की और जाने लगे तो वे कहने लगे कि - क्योकि कई दिनों के बाद बारिश रुकी है इसलिए खेत में मुंग बीनने हेतु मजदूर सुबह तुम्हारे खेत में जा रहे थे ! छोटी पहाड़ी की ढलान के एक पेड़ पर उन्हें एक आदमी फांसी पे लटका हुआ मिला ! मेरी जान हलक में आ गयी मैंने तुरंत पूछा किसको ? उन्होंने कहा – तुम्हारे मामा को !  मैंने जैसे ही सुना कि मेरे मामा को देखा  , मेरा ५० किग्रा का शरीर मुझे यु लगा जैसे अचानक टन भर का हो गया है , मै अवाक रह गया , मेरे पैर ऐसे शिथिल पड़  गए जैसे मुझसे एक कदम भर न चला जायेगा ! अभी कल ही तो मेरे मामा मुझे यहाँ छोड़ कर गये है ! अचानक क्या हो गया जो इतने खुश मिजाज़ , जिंदादिल इंसान , फांसी लगा ले ! 

दरअसल मेरे घर वालो को तब तक कोई खबर नही थी कि किस कारण से फांसी लगाईं मामा ने ! उन्हें ऐसा लगा कि कही ऐसा तो नही हुआ के मै कही तालाब पार करने में डूब गया हूँ और अब मामा क्या जवाब देते सो उन्होंने ऐसा कृत्य कर लिया ! मैंने जब मेरे परिचित जो मुझे लेने आये थे सब बाते बताई तब उन्हें पता चला कि शायद मेरी मामी को जब वे लेने गए थे तब वहा  किसी बात पर कोई बड़ी बात बन गयी , कोई ऐसी बात हुई जिससे उनकी आत्मा पहले ही मर गयी ! अब केवल जरूरत भर की साँस लेने वाला शरीर था जिसे उन्होंने फांसी लगाकर निष्प्राण कर दिया ! मेरे ख्याल से दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इतनी बड़ी वजह बना दे कि कोई इन्सान खुद को ख़त्म ही कर ले ! इंसान बिना घर के बशर कर सकता है , अगर रोटी नही मिलती तो भीख मांग कर खा सकता है , यदि कपडा नही मिलता तो एक ही कपडे में एक साल बिता सकता है , फिर कौन सी जरूरत बचती है जिसकी पूर्ति नही हो , जीने के लिए सबसे जरुरी प्राणवायु तो मुफ्त में ही मिल जाती है !  मै अब पाता हूँ के किसी आत्मा का पोषण एक प्राकृतिक ख़ुशी होती है जो उसे परिवार से , व्यक्ति विशेष से मिलती है ! यदि कोई बाहरी अतिमहत्वाकांशी/स्वहित/स्वसुखाय इंसान अपने किसी कृत्य से किसी ऐसे खुश मिजाज़ व्यक्ति पर अतिरिक्त रूप से किसी मौखिक/भौतिक/व्यवहारिक रूप से हावी होने लगता है , उसे उसकी प्राकृतिक ख़ुशी से वंचित करता है तो उसकी आत्मा का क्षरण होने लगता है , उसकी आत्मा धीरे धीरे मरने लगती है , कभी कभी यह कृत्य तीव्रता के साथ भी आता है जैसा मेरे मामा के साथ हुआ था ! आत्मा तो मर ही जाती है , शरीर तो बाद में मारा जाता है ! 

अब तरिका क्या है कि आत्मा के क्षरण को रोका जा सके ?  उन सभी आडम्बरपूर्ण , स्वहित साधक , खुदगर्ज लोगो से किनारा कर लिया जाये चाहे वे आपके कितने भी करीबी क्यों न हो , कितने ही नजदीक क्यों न हो , चाहे वे आपके नजदीक के रिश्ते क्यों न , ऐसे लोगो से इतनी दूर भागा जाये जितनी दुर किसी ज़हरीले सांप से ! सांप के बारे में हमें पूर्वाभास होता है कि वह हमे डस लेगा लेकिन ऐसे खुदगर्ज लोग आपको कब डस ले इसका कोई पता नही होता ! अगर हमें उन लोगो से यह डर हो कि वे हमारी प्रतिष्ठा धूमिल करेंगे तो यह छोटा सा नुकसान उठाया जा सकता है जिसकी भरपाई वक्त कर देगा ! लेकिन यदि आपने अपनी आत्मा को ऐसे लोगो के डर के कारण मार दिया तो वह बहुत बड़ा नुकसान होगा ! 

सो पुनश्च कहता हूँ , डर को मार दो , ऐसे रिश्ते  को मार दो जो आपकी आत्मा को मरने पे मजबूर करे ! आत्महत्या हल नही है किसी समस्या के समाधान का ! किसी प्रियजन की आत्महत्या से उसके न जाने कितने प्रिय लोगो की आत्माए मर जाती है ! मेरे मामा की आत्महत्या के चंद दिनों के बाद ही मेरी नानी इस दुःख को न सह पायी वे भी अच्छी भली , हँसते हँसते चल बसी , दोनों का तेरहवा एक साथ किया गया !

दोस्तों आत्महत्या समाधान नही है , समाधान है उस रिश्ते की हत्या जो आपको आत्महत्या के लिए मजबूर करे !

- राजेश “राणा” 

Category:Personal Experience



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Written by Rajesh Raana

◆ लेखक| कवि | विचारक | ◆

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