धरती पर बचे आखिरी पेड़ की कहानी

धरती के विनाश के बाद एक नई आशा

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28 Jun '24
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एक बड़ा सा पेड़ था 

मूँछों पर ताव देता खड़ा था ,

टहनियों में नया यौवन था और 

जड़ो में बीता कल, 

हरा भरा तन्दुरुस्त था 

पर ना जाने क्यों अकेले खड़ा था,


मैंने उसके पास जाकर 

उसके अकेलेपन का कारण पूछा 

मुझे देखकर बौखला गया और तीखी मुस्कुराहट से घूरने लगा 

 

मैंने पूछा एक सवाल , 

यहाँ अकेले क्यों खड़े हो बाबा ?

मुझे घूरते हुए देखा और अपना सारा कार्बन डाइऑक्साइड मुझपर छोड़ते हुए कहा 

"मैं इस पृथ्वी का आखरी पेड़ हूँ और 

अगर तुम आखरी इंसान भी हो तो भी मुझे किसी इंसान से बात नहीं करनी",

 

अब बात मेरे थोड़े समझ में आयी , उनकी सुनकर मैंने अपनी आपबीती सुनायी 

" मैं इंसान नहीं हूँ , अंतरिक्ष में घूमने वाला छोटा सा जीव हूँ, 

अपने यान में बैठकर आकाश गंगा की सैर पे निकला था ,

कुछ तकनिकी खराबी आयी और पिछली रात ही पृथ्वी पर आ गिरा था।"


इतना सुनकर बाबा थोड़े शांत हुए,  एक मासूम सा सवाल पूछा  

"तुम कार्बन डाइऑक्साइड लेते हो या ऑक्सीजन ?"


" एक छोटा सा जीव हूँ , अंतरिक्ष में घूमना मेरी निति ,

हवा, पानी, अंबर से मेरा कोई नाता ही नहीं "

पर ये सवाल क्यों किया बाबा ?


पेड़ ने भरे हुए गले से कहा "जिस तरह मैं इस पृथ्वी का आखरी पेड़ हूँ 

उसी तरह तुम यहाँ आखरी मेहमान हो, इसलिए मेज़बानी करते हुए पूछा ". 

इतिहास के पन्नो पर इस आखिरी मेहमान और मेज़बान का 

जिक्र करने के लिए कोई इंसान नहीं बचा। 

बाबा की बात सुन मुझे सब आधा - अधूरा ही समझ आया,

बाबा! यूँ बातों को ना घुमाओ 

मैं नया हूँ यहाँ सब कुछ शुरू से अच्छे से बताओ..... 


पेड़ बाबा ने अपना गला साफ़ किया 

मूँछों पर ताव देते हुए बोलना शुरू किया ,

"मैं तुझे अपने दुःख से परिचित कराऊंगा 

जो मंज़र इन बूढ़ी आँखों ने देखे वो सुनाऊंगा" ,


बीज के गर्भ से निकला था, धरती ने अपना आँचल हटाया ,

तब इस दुनिया से मेरा परिचय करवाया 

इन आँखों ने तब से अब तक बहुत कुछ देखा ,


एक हरी - भरी धरती को बंजर होते देखा 

100 साल से स्थिर खड़ा होकर 

सरकार को आते - जाते और 

आवाम को मरते देखा 

कुछ मरते थे कुछ वापस जिन्दा हो जाते थे ,


 

पेड़ लगाने वालों को , 

कुछ साल में इसी की टहनियों से झूलते देखा....... 

मैंने देखा एक व्यक्ति मेरी छावों में बैठकर 

खाना खाने को रुका ,

खाना खाकर बोतल से जिस कुएँ का पानी वो पी रहा था 

उसी कुँए में उसे मरते देखा

उसकी तड़प देखकर , तमाशा बनाने वालों को भी देखा 


गांव में भगवान की पूजा होते देखी

मेरी छाँव में बैठकर रोते 

एक नन्हे भगवान को भी देखा ,


मैंने देखा एक बालक , जिसे पिता खाना खिला रहे थे 

उस बालक को पिता के दूसरे हाथ से छल करते देखा......


जिन आँखों में माँ काजल लगाती 

उन्हीं आँखों को माँ कि ओर घूरते देखा.....


जिस सूरज को देख नदियां बहती और चिड़िया अठखेलियां करती 

उसी सूरज के क्रूर रोशनी में नदियों को सूखते देखा.....


मैंने आदमी के घर कचरा रोड में 

और दिल मैल घर के माहौल में देखा।।


फिर क्या हुआ बाबा ?


अपने कुछ दोस्तों को देखा 

किसी को सूख कर तो किसी को कटकर मरते देखा ,

मैं इतना बद्किस्मत हूँ , 

मैंने अपनी माँ के हरे आँचल को बंजर होते देखा 

नदी के समान उसकी निर्मल हँसी को 

जंगल में लगी आग के धुएँ साथ हवा में मिलते देखा , 

बादलों-सी आँखों से निकले उसके वो आँसू ,

जिसे मैंने गिरते तो देखा पर 

उससे प्रकृति के आँचल को हरा होते नहीं देखा.....

मैंने वापस अपने किसी भाई को पैदा होते नहीं देखा।।


और फिर आये तुम , यहाँ खंडहर बचे है अभी 

 शायद आग में जलने या पानी में डूबने से बच गए हो ,

पहली बार आये हो , चाहो तो उन्हें देख लो....

बाबा! आप कैसे बच गए ? 

 

मैं बच गया क्योकि ईश्वर ने मेरी नियति में इस तबाही को देखना लिखा ,

अब क्या होगा बाबा ?


पेड़ मुस्कुराया 

" सूरज के डूबने पर कभी आसमान नहीं रोता 

 मछली के मरने पर नदियां कभी शोक नहीं मनाती 

एक दुनिया की तबाही पर फिर वो खुदा क्यों दुःख मनाये 

अपनी आँखों के इशारों से वो फिर एक नयी दुनिया बनाएगा 

और उस दुनिया का पहला जीव मैं रहूँगा ,

और मुझसे होगी एक नयी दुनिया के सृजन की शुरुवात।।


 

Category:Poetry



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Written by lokanksha sharma