कहानी एक गुमनाम रियासत की ✍️

वो नाम किसी नाम की मोहताज़ नहीं

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14 May '24
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कहने को तो हमें आजादी मिल चुकी थी पर स्वतंत्र बस गिने-चुने लोग ही हो पाए । और बंदिशों में बंधी नारी अब भी राह देख रही थी ख्वाबों के खुले आसमान में उड़ान भरने को । ऐसा नहीं था कि सिर्फ निम्नमध्यवर्गीय या मध्यमवर्गीय स्त्रियों का स्तर एक दासी के समान था , उच्च वर्ग के हालात भी कुछ ज्यादा अच्छे नहीं थे फर्क बस इतना सा था कि वो दासी महलों की थी । निम्नवर्गीय महिलाओं की तो बात भी कौन करता भला वो तो मजदूर थी जिन्हें मेहनताना में बामुश्किल ही दो वक़्त का खाना नशीब होता हो ।

            रफ्ता-रफ्ता देशी रियासतें वक़्त के पहिये से घिस-घिस कर इतिहास के पन्नों में कहीं किसी अवशेष तले दबती चली गई । कायम रही तो बस किसी की सादगी ,जी हाँ यही तो है एक देशी रियासत की कभी ना खत्म होने वाली जागीर ,सच कहूँ तो  भारत की असली विरासत । बाल विवाह का प्रचलन तो पहले की अपेक्षा बहुत कम हो गया था परंतु किशोरियों का विवाह बगैर किसी रोक-टोक के धड़ल्ले से होता रहा । अब 14 से 17 साल की बालिकाओं के मन की सुनता भी कौन भला । अक्सर रिश्ते लगाने वाले ऊँचा खानदान और बेशुमार दौलत देखकर उम्र का अंतर भूल जाते थे फिर चाहे पति की आयु लगभग दोगुनी या तीन गुनी ,कहीं कहीं तो पितामह तुल्य ही क्यों ना हो । इस तरह के विवाह के रिवाज को हमारा समाज सहर्ष स्वीकार कर लेता ।

           ऐसी ही एक गुमनाम रियासत की महारानी की कहानी है ये दास्तान । मानो वो किसी तपस्विनी की भाँति सादगी की साधना का आशीष थी और प्रकृति की साक्षात मूर्ति । देख कर प्रतीत होता है कि जैसे सृष्टि का समस्त आकर्षण एक स्त्री का रूप बन कर इस वसुंधरा को गौरवान्वित कर रहा है । माथे पर संस्कार की चमक और चेहरे पर एक अद्भुत तेज है । बीच-बीच में लोगों की खराब नजरें छोटे-बड़े दाने बनकर सादगी को छेड़ने का काम भी करती रहती है मगर कोई बनावटीपन थोड़े ही है जो ढ़ल जायेगा ,इस बेमौसम बूंदाबांदी के बाद फिर से निखर उठती है ये सादगी की ताजगी । मगर ये दुनिया इतनी बुरी है कि क्या बताऊँ गालों का एक हिस्सा मानो जंग ही लड़ते रहता है अवसादों से । इस उम्र में जहाँ अन्य नारियों को कृत्रिम श्रृंगार और दर्पण से फुरसत नहीं मिलती इनको तो बस आईना निहार ले तो उसका दिन बन जाये । खुली जुल्फों के बीच एक छोटी बिंदी भी सोलह सिंगार लगती है । कानों में मोती और आँखों की ज्योति ,अधरों पे शर्म की मध्यम लाली और मुस्कुराहट से blush करते गाल हाय कुदरत का कोई करिश्मा ही तो है । ये सब तो बात हुई सादगी की शहजादी के भौतिकता की ,रूह से भी वो एकदम खरा सोना है । हृदय इतना विशाल है कि प्रशांत महासागर भी ठिगना लगता है और उसमें दयालुता की जो निर्मल जलधाराएँ बहती है उसने कभी मित्र और शत्रु में भी भेद नहीं किया ,ये सबके काम आती है । सादगी की इस काया की सबसे बड़ी विशेषता है कि यह मन में कोई गाद या विषाद नहीं रखती , बिना किसी परवाह के सबकुछ सामने रख देती है । अब सूरज की गर्मी के सामने पड़ोगे तो हो सकता है उत्तेजित स्वर की लपटों से कभी जल भी जाओ । राशि और अंकों के गणित के हिसाब से स्वामी भी सूर्य ही है । पर ये आक्रोश स्थायी नहीं होता ,अगले ही पल ये करुणा की देवी अपने वास्तविक रूप में आ जाती है जो प्रतीक है निर्मल हृदय की भावनात्मकता का । 

           इस सादगी में चार चाँद लगाते है ये दो कलात्मक हाथ । प्रतिभा तो कूटकूट कर भरी है पर घमंड रत्ती भर नहीं ,होगा भी कैसे आख़िर देशी रियासत की महारानी जो ठहरी । उँगलियों में मानो कोई जादू है जो किसी भी कल्पना को यथार्थ का रूप दे सकता है । वो मेहंदी लगा दे जो किसी हथेली पर तो लगता है जैसे किसी सल्तनत के मेहराब को हाथों में उतार दिया गया है । उनके बनाये चित्र बातें करते है बातें। वो बेमन से भी कलम घुमा दे तो कोई रैंडम आर्ट बन जाता है । पता नहीं इतना सबकुछ कैसे आता है ? 

         अभी तो मैंने असली विशेषता बताई ही कहाँ ,सुरों की भी मल्लिका है ये महारानी ,बिना किसी अभ्यास के भी क्या गजब परख और पकड़ है , एक-एक अल्फ़ाज़ एकदम खनकते हुए कानों को सुकून से भर देते है और किसी भी गाने के बोल नींद में भी पूछ लो विकिपीडिया है विकिपीडिया । और  वॉयसओवर इसके बारे में क्या कहे 🤫 सच कहूँ तो निःशब्द रह जाता हूँ। 

           इन सब गुणों के साथ सामाजिक और आध्यात्मिक ज्ञान भी उत्तम है । विषय पर पकड़ तो अभ्यास का काम है पर परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने में महारथ हासिल है और सलाह देने में भी अव्वल है ।

इस विशेष कहानी में सबकुछ तो बस इन्हीं का है फिर बताइये एक साधारण से लेखक की भला क्या ही भूमिका है ? 

🌱SwAsh🌳

✍️shabdon_ke_ashish✍️


 


 

Category:Stories



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Written by Ashish Kumar

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