कहानी : दुआ का असर

प्रतियोगिता के लिए

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26 Jun '24
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ममता… अरी ओ ममता…

अरे आज आप ऑफिस से जल्दी आ गए…

अरविन्द के चेहरे पर कुछ उदासी के भाव थे…

अरविन्द ने कहा - ममता जल्दी से बैग में कपडे रखो… हमें शाम की ट्रैन से भोपाल निकलना है… पिताजी की तबियत खराब है…।

मैंने ट्रैन के दो टिकट ऑनलाइन बुक कर लिए हैं…।

ममता ने भी वक्त को समझा… और झटपट कपडे निकालने लगी… जनवरी का महीना होने के कारण सर्दी से बचने के लिए… गर्म कपडे भी निकाल लिए… अरविन्द दिल्ली में एक निजी संस्थान में कार्य कर रहा था…

तैयारी करते करते साढ़े चार बज गए… अरविन्द ने कहा… हमें अभी निकलना चाहिए… ट्रैन छह बजे की है… 15 से 20 मिनट स्टेशन पर ही लग जाते हैं… दोनों बाहर आए और ऑटो रिक्शा करके स्टेशन चल दिए… लगभग 40 मिनट बाद स्टेशन पहुँच गए…।

अरविन्द और ममता अब अपने सफर पर थे… इसी ट्रैन में एक मजदूर दम्पति भी अपने दो छोटे बच्चों के साथ सफर कर रहे थे… उसने भी शयनयान श्रेणी में आरक्षण कराया था… जब ट्रैन आगरा से निकली, तब सर्दी ने अपना असर दिखाना प्रारंभ कर दिया… अरविन्द और ममता के पास पर्याप्त गर्म कपड़े थे… लेकिन मजदूर दंपत्ति पर ठण्ड का असर दिखने लगा था… हाँ मजदूर की पत्नी एक पतला सा शाल ओढ़े हुए थी और बच्चे भी नाम मात्र को गर्म कपड़े पहने हुए थे… मजदूर की हालत देख अरविन्द ने मजदूर रघुनाथ से पूछ ही लिया… कि आप गर्म कपड़े पहन लीजिए… रघुनाथ ने अरविन्द की बात को सुनते हुए भी अनसुना कर दिया… मजदूर की भावभंगिमा को देखकर सहज़ ही यह अनुमान लगा लिया कि रघुनाथ के पास शायद गर्म कपड़े नहीं हैं… तभी अरविन्द ने कहा… ममता मेरा वह गर्म बनियान निकाल देना जरा… ममता भी सेवा भावी स्वभाव की थी… इसलिए उसने तत्काल ही गर्म कपड़ा निकाल दिया… अरविन्द ने जब वह कपड़ा रघुनाथ को देकर पहनने के लिए दिया… तो रघुनाथ के चेहरे पर संकोच का भाव था…

रघुनाथ ने कहा कि रहने दीजिए साहब… तब अरविन्द ने कहा - मुझे अपना बड़ा भाई समझकर ले लीजिए… इसके बाद रघुनाथ ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया… लेकिन फिर से हाथ रुक गए… अबकी बार अरविन्द ने जबरदस्ती करते हुए रघुनाथ के हाथ अपनी ओर खींच लिए… और गर्म कपड़ा रघुनाथ के हाथ में रख दिया…

अरविन्द ने कहा कि अब इसे पहनो… रघुनाथ को अरविन्द के इस शब्द में कुछ अपनत्व दिखा और वह कपड़ा पहन लिया… मजदूर की पत्नी ने अरविन्द को दुआ देते हुए कहा कि भाई साहब आज के जमाने आपके जैसे बहुत कम लोग हैं… यह आपके माँ बाप के दिए हुए संस्कार ही हैं… ऐसा सेवा भाव जिसके मन में हो उसका भगवान् सहयोग करते हैं।

अब रघुनाथ को सर्दी का अहसास नहीं था… उसकी बातों में भी खुलापन आ गया… रघुनाथ ने अरविन्द से कहा कि भाई साहब… आप इतने अच्छे मन के हैं… तो आपके पिता बहुत अच्छे होंगे… उनको भगवान् लम्बी उम्र दे… इतने में ही अरविन्द को अपने पिता का ध्यान आया…

अरविन्द ने ममता से कहा कि पता नहीं पिताजी की तबियत कैसी होगी… यह बात मजदूर की पत्नी ने भी सुनी… उसने कहा… भाई साहब… आपके पिताजी को कुछ नहीं होगा… वो ठीक हो जाएंगे… इतने में ट्रैन में नींद का झोंका आ गया… लेकिन आँखों से नींद दूर ही थी… फिर भी अपनी अपनी सीट पर लेट गए… सुबह पांच बजे ट्रैन भोपाल पहुँच गई… रघुनाथ ने अरविन्द का सामान उतारने में मदद की… उन्होंने स्टेशन से ऑटो किया और घर पहुँच गए… चूँकि पिताजी अस्पताल में भरती थे… इसलिए ममता और अरविन्द अस्पताल चल दिए… अस्पताल में अरविन्द के बड़े भाई प्रवीण भी मिल गए… अरविन्द को देखकर प्रवीण की आँखों में आंसू आ गए… अरविन्द भी किसी अनहोनी की आशंका से भयभीत हो गया… इतने में ही चिकित्सक आ गए… चिकित्सक ने कहा कि कल रात्रि तक आपके पिताजी की तबियत बहुत खराब थी… कोई दवा भी काम नहीं कर रही थी… अब यह ठीक लग रहे हैं… ऐसा लगता है कि इन पर दवाओं का नहीं किसी की दुआ का असर हुआ है… तभी यह बच गए… बरना हमने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी… चिकित्सक के इतना कहने के बाद ही ममता और अरविन्द के सामने ट्रैन वाले मजदूर के परिवार का चेहरा घूम गया… अरविन्द को महसूस हुआ कि दुआओं का असर होता है…।

Category:Stories



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Written by Suresh Hindusthani

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