मोहल्ले के कोने में वर्मा जी के मकान में एक नया किरायादार रहने आया था । मोहल्ले के लोगों को वो बहुत ही अजीब लग रहा था, न वो किसी से बात करता न किसी के घर उसका आना-जाना था, उसके घर मे कौन कौन रहता था, ये भी किसी को पता नहीं था । वो आदमी जिसकी उम्र लगभग 50 साल के आसपास रही होगी , वो रोज सुबह - सुबह कहाँ चला जाता किसी को पता नही था, पर रोज शाम को शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए , गिरते - पड़ते गन्दगी से लथपथ जब वो वापस आता तो पूरा मोहल्ला तमाशबीन बनकर उसकी हालत का मजा लेने घरों से बाहर जरूर निकल आता था । 6 महीने बीत जाने के बाद भी किसी को उनका नाम तक मालूम नहीं था, मालूम था तो बस इतना ही की वो एक शराबी है और शायद कोई अपराधी ।
लोगों को इतना तो मालूम था कि उस घर मे उसके अलावा और भी कोई रहता है पर वो कौन है ये न तो किसी को पता था, और न किसी मे इतनी हिम्मत थी कि कोई उससे इस बारे में पूछ सके । सुबह वो घर को बाहर से ताला लगाकर जाता जो शाम- रात को उसके आने पर ही खुलता था । मोहल्ले के बच्चे उसे देखते ही अपने- अपने घरों में छिप जाते थे ।
बरसात की एक रात की बात है चार पांच गुंडे टाइप के आवारा लड़के बदहवास इधर- उधर घूम रहे थे, उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी को बड़ी बेसब्री से तलाश कर रहे हों । इन सबसे बेखबर रोज की तरह अपनी धुन में मस्त, शराब के नशे में मदहोश लड़खड़ाते हुए वो अपने मकान की ओर चला जा रहा था । तभी उसे दूर अंधेरे में एक परछाई नजर आई । उसे लगा कोई है जो अंधेरे में बैठा हो । उस अंधेरे कोने में डरी सहमी सी एक बच्ची इन गुंडों से छिपकर, अपने कटे फ़टे कपड़ो से अपने तन को बारिश के बूंदों से बचाते हुए बैठी थी । जब ये आदमी उसके पास पहुंचा तो वो बच्ची इसे देखकर, थरथर कांपने लगी । इसने बच्ची से पूछा यहाँ क्यों बैठी हो । वो लड़की रोते बिलखते हुए कहने लगी मैं अपने माँ बाप के गुजरने के बाद अपने भैया- भाभी के साथ रहती थी । लेकिन एक दिन मेरे भैया का एक्सीडेंट हो गया और उनके जाने के बाद भाभी ने दूसरी शादी कर ली । उसके बाद वो मुझे बहुत मारती पिटती थी । मुझसे घर का पूरा काम कराती थी और भूखे रखती थी । आज उनके नई पति ने मुझे कुछ गुंडों को बेच दिया मैं किसी तरह इनसे बचकर यहाँ छिपी हूँ ।
उसकी बातों को सुनकर उस आदमी ने उसका हाथ पकड़ा और उसे घसीटते हुए जबर्दस्ती अपने घर की ओर ले जाने लगा । वो लड़की कुछ समझ पाती उससे पहले वो अपने घर का ताला खोलकर उसे घर के अंदर धकेल देता है, और जोर चीखता है । देखो सुजाता ! देखो मैं आज किसे लेकर आया हूँ, सुजाता बुत बने उस 13-14 साल की मासूम बच्ची की आंखों में देख रही थी जिसमे उसे एक अनजाना सा डर साफ नजर आ रहा था । सुरेश रोते हुए सुजाता से कहता है, "सुजाता अब से ये हमारी बेटी है, आज के बाद कोई तुम्हें बांझ नहीं कहेगा सुजाता ! अब हमारे घर मे खुशियां आयेंगी । अब कोई हमारा मजाक नही उड़ायेगा । अपनी कमजोरी से भागने के लिए मुझे शराब का सहारा नही लेना पड़ेगा । आज हमारे घर लक्ष्मी आई है । मेरी कमजोरी के कारण अब कोई तुम्हें बाँझ" ,,,,,, उसके आगे के शब्द उसके कांपते होठों और आंखों बहते जल के कारण उसके गले से बाहर नही आ पाये,,,,
सुजाता जड़वत खड़ी कभी अपने पति को और कभी उस फूल सी मासूम बच्ची को देखती जा रही थी । उसके आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहती जा रही । पता नही कितने सालों से जो सैलाब उसके अंदर दफन था मानो आज वो ज्वालामुखी बनकर उसकी आंखों से बह निकला हो । शादी के 30 सालों तक बाँझ का जो कलंक उस पर लगा था उस कलंक को धोने के लिए इन आसुंओं को बाहर निकलना जरूरी था ।
दूसरी ओर वो मासूम बच्ची थी जो अब भी शून्य की ओर निहार रही थी । अब भी उसकी आँखों में कुछ भाव नजर आ रहा था पर वो भय के भाव न होकर निश्चितता के भाव थे । जैसे अपनी माँ से बिछड़ा कोई बछड़ा अपने माँ को पाकर उसे एकटक देखता है उसी प्रकार वो बच्ची अपने नए माता पिता को निहार रही थी ।
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