बदलते समय के अनुसार भारत के कुछ शिक्षित युवा अब नौकरी के पीछे नहीं भागकर खुद का उद्यम यानी स्टार्टअप शुरू करने का प्रयास करने लगे हैं। हालांकि यह संख्या अभी बहुत कम है। लेकिन आईआईटी और आईआईएम से पढ़ाई पूरा कर निकलने वाले युवा अब मोटे पैकेज की सैलरी के पीछे नहीं भागकर खुद का उद्यम खड़ा करने के बारे में सोच रहे हैं तो यह अच्छी बात है। आईटी, मीडिया और अन्य उद्योगों के दक्ष पेशेवर भी अब खुद स्टार्टअप शुरू करने में रूचि लेने लगे हैं। यह बदलते भारत का संकेत है। 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनवरी 2016 में स्टार्टअप योजना को लांच किया। इस योजना को सफल बनाने के लिए DPIIT ने 945 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया। प्रुफ आफ कंसेप्ट और प्रोटोटाइप डेवलपमेंट आदि के आधार पर स्टार्टअप को आर्थिक सहायाता प्रदान करने के लिए इतनी मोटी रकम आवंटित की गई। स्टार्टअप इंडिया सीड फंड स्कीम(SISFS) के तहत कोई भी स्टार्टअप 20 लाख रुपए की सहायता राशि पा सकता है। लेकिन इसके लिए जो जो मानडंद रखा गया है उसपर अधिकांश स्टार्टअप खरे नहीं उतरते हैं और इसलिए नए उद्यम 20 लाख रुपए के सीड फंड पाने से वंचित रह जाते हैं। प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक डिपार्टमेंट फार प्रोमोशन एंड इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) ने 31 दिसंबर 2023 तक 1,17254 स्टार्टअप को पंजीकृत किया है। विभिन्न क्षेत्रों में इतनी बड़ी संख्या में स्टार्टअप शुरू होने से 12.42 लाख प्रत्यक्ष रोजगार सृजित हुए हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि यह टिकाआउ नहीं है। इसलिए की पर्याप्त पूंजी के अभाव में 90 प्रतिशत स्टार्टअप बीच में ही दम तोड़ देते हैं। कहने को तो एक स्टार्टअप ग्रांट के तौर पर 20 लाख रुपए तक की सीड फंड पाने के हकदार है। स्टार्टअप के लिए 50 लाख रुपए तक तक सस्ते व्याज दर पर बैंक से ऋण उपलब्ध कराने का भी नियम है। लेकिन अधिकांश स्टार्टअप यह सुविधा पाने से वंचित ही रहते हैं और पूंजी के अभाव में संघर्ष करते करते एक दिन बंद हो जाते हैं। स्टार्टअप के लिए 20 लाख रुपए का सीड फंड और 50 लाख रुपए के सस्ते दर पर व्याज उपलब्ध कराने का जो पेचिदा खेल है उस पर यहां एक नजर डालना प्रासंगिक होगा।
DPIIT से मान्यता प्राप्त कोई भी स्टार्टअप सीड फंड के लिए आवेदन कर सकता है। मान्यता प्राप्त करने के दो साल की अवधि में तीन बार सीड फंड के लिए आवेदन किए जा सकते हैं। दो साल की अवधि पूरा कर लेने वाले स्टार्टअप सीड फंड के लिए आवेदन करने की योग्यता खो देते हैं। स्टार्टअप इंडिया पोर्टल के माध्यम से सीड फंड के लिए आवेदन किया जाता है। सीड फंड किसी प्रतिष्ठित इनक्यूबेटर के माध्यम से मिलता है। फंड के लिए आवेदन करते समय पोर्टल में पंजीकृत तीन इनक्यूबेटर का नाम सेलेक्ट करना पड़ता है। आवेदन स्वीकृत हो जाने के बाद 45 दिनों के अंदर तीनों इन्क्यूबेटर स्टार्टअप के फाउंडर का आनलाइन इंटरव्यू ले सकते हैं। कुछ इंटरव्यू की प्रक्रिया में नहीं जाकर सीधे स्टार्टअप के फाउंडर से कुछ जरूरी कागजात मांगते हैं। कुछ तो आवेदन को देखने के बाद सीधे कोई कारण बताकर फंड देने से इनकार कर देते हैं।
एक स्टार्टअप फाउंडर के रूप मैं इस तरह की समस्याओं का सामना कर चुका हूं और प्राप्त अनुभव के आधार पर यहां बताना चाहता हूं कि अधिकांश इनक्यूबेटर इनोवेटिव आइडिया नहीं होने का कारण बताकर स्टार्टअप को सीड फंड देने से इनकार कर देते हैं। लेकिन मजे की बात यह है कि कोई भी नव उद्यमी जब स्टार्टअप के लिए आवेदन करता है तो उसे इनोवेटिव आइडिया का कॉलम भरना पड़ता है। इनोवेटिव आइडिया होने पर ही DPIIT किसी उद्यम को स्टार्टअप का प्रमाण पत्र देता है। इसलिए इनक्यूबेटर द्वारा इनोवेटिव आइडिया नहीं होने के आधार पर किसी स्टार्टअप को सीड फंड देने से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं है। दरअसल अधिकांश इनक्यूबेटर ने अपने यहां इनक्यूबेशन सेंटर खोल रखा है। मोटी रकम लेकर वे स्टार्टअप को अपने सेंटर में इनक्यूबेट करते हैं। एक बार आवेदन खारिज हो जाने के बाद 45 दिनों के बाद स्टार्टअप दोबारा सीड फंड के लिए आवेदन कर सकते हैं। लेकिन फंड मिलने की कोई गारंटी नहीं होती।
दूसरी तरफ स्टार्टअप को फंड दिलाने के लिए बड़े शहरों में कुकुरमुत्ते की तरह तरह कंसल्टेंट कंपनियां उग आई हैं। एनजेल इनवेस्टर और वेंचर कैपिटलिस्ट के नाम पर पर भी स्टार्टअप फाउंडर के साथ खेल खेला जाता है। कंसल्टेंट कंपनियां सीड फंड दिलाने का दावा करती हैं। अगर कोई स्टार्टअप फाउंडर उनके झांसे में पड़ जाता है तो सीड फंड के लिए प्रोजेक्ट रिपोर्ट और अन्य कागजात तैयार करने के लिए कंसल्टेंट कंपनियां 50 हजार से 1 लाख रुपए तक का फीस वसूलती हैं और फंड मिलने के बाद उसमें से अपना 2-3 प्रतिशत तक का कमीशन की भी मांग करती हैं। कंसल्टेंट कंपनियां दावा करती हैं कि इनक्यूबेटर के साथ उनका टाइअप है। कुल मिलाकर अगर कोई स्टार्टअप फाउंडर सीड फंड के लिए इन कंपनियों के मार्फत आवेदन करता है तो उसे कम से कम 50 हजार से 1 लाख रुपए तक खर्च करने होंगे। इसके बावजूद 20 लाख रुपए का सीड फंड मिलेगा कि नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं है। 50 लाख रुपए तक लोन दिलाने के लिए भी कंसल्टेंट कंपनियां प्रोजेक्ट रिपोर्ट और अन्य कागजात तैयार करने के लिए कम से कम 50 हजार रुपए तक का फीस वासूलती हैं। लेकिन इसमें भी लोन मिलेगा इसकी कोई गारंटी नहीं होती।
वेंचर कैपिटलिस्ट और एंजल इनवेस्ट भी स्टार्टअप फाउंडर से पीचडेक, फिनासियल रिपोर्ट और वैल्यूशन की मांग करते हैं। इन इनवेस्टरों की ओर से कभी कभी कोई एजेंट वैल्यूएशन समेत अन्य दस्तावेज तैयार करने के लिए 70 हजार से लेकर 1 लाख रुपए तक की मांग करता है। स्टार्टअप फाउंडर को किसी एंजेल इनवेस्टर या वेंचर कैपिटलिस्ट के पास पहुंचने के लिए भी एक लाख रुपए तक खर्च करना पड़ सकता है। यह पूरा खेल उसी तरह का है जैसे किसी शिक्षित बेरोजगार को नौकरी दिलाने के लिए रिश्वत मांगी जाती है। नौकरी की लालच में वह कहीं से कर्ज उधार मांगकर देता भी है लेकिन अंततः नौकरी मिलेगी इसकी कोई गारंटी नहीं होती। इसी तरह स्टार्टअप फाउंडर से फंडिंग के नाम पर तरह तरह के फीस वसूले जाते हैं और अंत में उनके हाथ कुछ नहीं लगता।
इसका एक दूसरा पक्ष यह भी है कि स्थापना के कुछ ही दिनों के अंदर कुछ उद्यम युनिकॉर्न स्टार्टअप का रूप ले लेते हैं। देखा जाता है कि कंपनी बनने के कुछ दिनों के अंदर ही कुछ स्टार्टअप को सरकारी या गैर सरकारी वित्तीय संस्थानों से पर्याप्त फंड मिल जाते हैं। देखते देखते वह स्टार्टअप छह माह या एक साल के अंदर ही हजार करोड़ की कंपनी बन जाती है। साल दर साल उसे फंड मिलते जाते हैं और फिर शुरू होता होता है मनी लंड्रिंग का खेल। देखते देखते वह स्टार्टअप हजारों करोड़ का टर्नओवर वाला घाटा में चलने वाला संस्थान बन जाता है। घाटा में चलने के बावजूद उसे फंड की कोई कमी नहीं होती है। इसके पीछे मनी लंड्री का खेल चलता रहता है। 200-400 करोड़ घाटे में चलने वाले यूनिकॉर्न स्टार्टअप को फंड रैज करने में कोई दिक्कत नहीं होती। वहीं दूसरी ओर अधिकांश स्टार्टअप फाउंडर को जो कि अपने प्रोफेशन में काफी दक्ष है, उन्हें कहीं से फंड नहीं मिलता। अंततः इस तरह के प्रोफेशनल फाउंडर फंड के अभाव में अपना स्टार्टअप बंद कर देते हैं या पानी के भाव उसे बिक्री कर देते हैं।
एक शिक्षित युवा या किसी विशेष क्षेत्र का कोई प्रोफेशनल अपना स्टार्टअप शुरू करता है और कंपनी बनाता है तो जाहिर है उसे शुरूआत में अपने पैसे खर्च करने पड़ते हैं। कंपनी बनने के बाद सीए नियुक्त करने से लेकर हर साल कम्पलायसेंस भरने में उसे अपनी जेब से ही खर्च करने पड़ते हैं। ट्रेड लाइसेंस से लेकर जीएसटी आदि अन्य जरूरी चीजों पर सरकार को शुल्क देना ही पड़ता है। इसलिए पंजीकृत स्टार्टअप के लिए कम से कम 10-20 लाख रुपए का भी न्यूनतम फंड उपलब्ध कराने का प्रावधान होना चाहिए। इसमें किसी क्षेत्र विशेष के दक्ष प्रोफेशनल फाउंडर को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। सरकार यदि स्टार्टअप के लिए फंड सुनिश्चित करती है तो देश के जीडीपी में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होगी। इसलिए कि हर स्टार्टअप में न्यूनतम 10-20 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा और इससे बेरोजगारी दूर होगी तथा देश की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ होगी।
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