खेल - भावना

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10 Jun '24
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खेल - भावना

आज प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में हार-जीत होती रहती हैं । मनुष्य को खेल- भावना से जीवन जीना हैं , और कर सके तो कल्याणकारी कार्य करना हैं । हम प्रत्यक्ष देख रहे किसी भक्ति में , अंंहकार में एवं मेरा रिकॉर्ड सर्वोतम रहे , आर-पार रहे , बहुत ज्यादा अतिविश्वास में हार होती हैं । दूसरा चाहिए नही खेल में यही विकृत भावना से हुडदंग कर टीवी फोडना , अपने ही परिवार को मुसिबत में डालकर देश की संपत्ति का नुकसान करना । अपना विवेक खोकर अनाप-शनाप वचन बोलना , गाली-गलोच करना । गुस्से में आकर बड़े बोल बोलकर महाभारत करना । अपने परिजन का विनास करना ।

इसलिए हमें यह सोचना है , जीवन में हार - जीत होती रहेगी । संबध , स्नेह कल्याणकारी भावना हमें जीवित रखना हैं , जैसे भूल से सबक लेते हैं , वैसे ही हार का विश्लेषण कर सुधार करना हैं , बल्कि धिक्कार करना हैं , उनसे लेन-देन बंद करना , तिरस्कार से देखना । अपनी गलतियों में सुधार करना हैं । परिवर्तन के बिना न तो प्रगति संभव हैं , न ही उन्नति । खेल-भावना रखकर अपने आप को बदल कर अपनी मानसिकता को बदलना हैं । अन्यथा दौड़ में हम ही आखरी होगे । खेल- भावना से मानसिक परिवर्तन में जो प्रथम होगा , वही प्रथम रहता हैं । कोई सागर गहरा नही , कोई पर्बत उंंचा नही , कोई हार-जीत , कठीन नही , चुनौती नही , परिवर्तन को मन से स्विकार कर खेल- भावना सदैव रहें , और देश का विकास व हर आपदा-विपदा में साथ रहें । सभी अपने हैं ।  नियमोंं का पालन करे । संविधान सबके लिऐ । खेल - भावनाओं से स्विकारे । जीत गये तो सदैव विनम्रता रखना हैं । हारते है तो गलती को सुधारना जरुरी हैं ।

Category:Prose



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Written by Raju Gajbhiye

Raju Gajbhiye