ज्योंही कन्या घर में आती
दुख की बदली-सी छा जाती
कन्या के माता और पिता
धरने लगते हैं धन सहेज
सामाजिक दानव है दहेज
होती विवाह के लायक जब
देखने अनेकों आते तब
वह ठोंक-बजा परखी जाती
आहत कर उसका स्वत्व तेज
सामाजिक दानव है दहेज
छाती का पीपल कहलाती
मजबूरी में पाली जाती
होते ही उमर अठारह की
दी जाती है ससुराल भेज
सामाजिक दानव है दहेज
नित सास-ननद देती ताना
असमय मिलता पीना-खाना
निशि में पति का बदला मिजाज
कर देता है कंटकित सेज
सामाजिक दानव है दहेज
नाना उत्पीड़न नित सहती
अपना दुख किससे कब कहती
'नववधू ने किया आत्मदाह'
यह खबर न अब सनसनीखेज
सामाजिक दानव है दहेज ।
— महेश चन्द्र त्रिपाठी