सिसकती अयोध्या

प्रासंगिक काव्य

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10 Jun '24
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सिसकती अयोध्या 

 

अब क्या बाकी रह गया था अयोध्यावालो 

अब तो थोड़ी लाज रख लेते 

किसी दल वल या राजनीति को छोड़ो 

थोड़ी राम की तो रख लेते 

अरे क्या क्या नहीं हुआ राम के बहाने 

उस राम को तो बख्श  अब देते 

शायद अवधपुरी में रहकर भी 

तुम जान न पाए अवध परिभाषा 

राम को तुम फिर  क्या जानोगे 

व्यर्थ व्यर्थ है सारी  अभिलाषा 

अरे! राम तो सबका अंतर प्रकाश है 

राम के कारण ही फैला उजास है 

पवित्र उजास में गहन तिमिर फैलाकर 

बताओ तुमने डाला कौनसा फास है ? 

कृतघ्नता की भी हद होती है 

जो लांघ दी तुमने सारी 

अब समय ही केवल उत्तर दे सकता 

कब तक खेलोगे छल की पारी 

ऐसी भी कितनी शापित है अयोध्या

उषापित जो हों नहीं सकती 

स्वयं राम के आने के बाद भी 

दिलो का मैल जो धो नहीं सकती 

अयोध्या की मिटटी सिसक रही है 

तुम क्या सुनोगे उसकी सिसकिया 

शरयु की साँसे अटक रही है 

जाने लगी तुमको किसकी हिचकिया ?

 संजीव आहिरे 

नाशिक (महाराष्ट्र )

Category:Poem



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Written by Sanjeev Ahire

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