🌐हाल ही मेरा सम्पर्क नारायण सेवा संस्थान से हुआ. वो लोग दिव्यांग और विकलांग लोगों के लिए काम करते हैं. उनके स्कूल भी हैं.. उन्होंने फंड लेने के लिए टेलीकॉलिंग का तरीका अपनाया हैं. इसके लिए टीम अपॉइंट की हैं और उसे वो इंसेंटिव दे रहें हैं.. हिन्दू त्योहारों और तिथियों को वो फोकस कर लोगों से डोनेशन देने की अपील करते हैं लेकिन साथ ही वो एक एक डोनर को अपने ngo के काम का रिकार्ड भी बताते हैं. फोटो vidyo. वेबसाईट.. सब कुछ देते हैं.
डोनेशन लेने के लिए भी संस्था का अपना गेट we. फोन पे. Qr कोड. सब कुछ हैं और वो हर डोनर की पूरी जानकारी ले कर उसका रिकार्ड भी रखते हैं. उसे डोनेशन की रसीद देते हैं.
डोनेशम क्यों ले रहे हैं वो भी बताते हैं जैसे यदि 7लोगो के लिए व्हील चेयर चाहिए या दो बच्चो को नकली पैर लगवाना हैं तो कितना खर्च आएगा. सब बताते हैं.. वो दुकान का नाम फोन नम्बर सब बताते हैं.. यदि डोनर स्वयं ला के देना चाहे तो वो भी हो जाता हैं..
यह सब बताने का मतलब हैं कि अच्छे ngo इतनी पारदर्शिता के साथ काम करते हैं.. यह एक आदर्श स्थिति हैं...
फंड यूँ ही मांगने से कभी नहीं मिलने वाला ज़ब तक कि ngo के उद्देश्य स्पष्ट ना हों और वो डोनर एजेंसी को फंड के सदुपयोग का यकीन नहीं दिलाएंगे.
इसलिए सिर्फ प्रोजेक्ट और फंड के लिए सारा फोकस देने से बेहतर होगा कि ngo अपने उद्देश्य स्पष्ट रखे और सार्वजनिक करें एवं अपनी कार्य शैली को स्पष्ट. पारदर्शी. आधुनिक और उन्नत बनाएँ.🌐
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