लघुकथा
प्रतिभा
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फागुन का महीना और गांव मे मेला लगा था, एक जगह मदारी अपने करतब दिखा रहा था ,साथ ही उसकी दस-बारह बरस की लड़की भी अपना करतब दिखा रही थी ,वह कभी रस्सी पर चलती कभी ऊंचे बंधे बांस को ऊंचाई से छलांग लगा कलाबाजियाॅ दिखाती ,लोग बहुत उत्सुक होकर उसके करतब देख रहे थे ,
खेल दिखाने के बाद वह एक कांसे का कटोरो लेकर भीड़ के बीच घूम-घूम कर भीख मांगने लगी,लोग सिक्के निकाल-निकाल कर डालने लगे ,
दूर बैठे गांव के स्कूल के गेम्स टीचर रस्तोगीजी ने जब उसे इतने अच्छे साहसिक करतब दिखाने के बाद भीख मांगते देखा तो मन करूणा से भर गया ,
वे उठे और उस बालिका के पास पहुंचे,
बेटी ! इतना अच्छा खेल दिखाकर तुम भीख मांग रही हो...?
क्या करे बाबूजी , पेट भरने के लिऐ कुछ तो करना पड़ता है ,
क्या तुम पढ़ने जाती हो...?
यहाँ पेट भर खाने के ही लाले पड़े हुऐ है और आप स्कूल जाने की बात कर रहे है बाबूजी ...?
में आज ही तुम्हारा नाम स्कूल मे लिखवा देता हूँ ,और स्कूल की एथलेटिक्स टीम मे शामिल कर लेता हूँ, चलो तुम्हारे पिताजी से बात कर लेते है ,
गेम्स टीचर रस्तोगीजी ने उसके पिता से बात की और अपने स्कूल मे भर्ती कर लिया और एथलेटिक्स टीम मे भी....
और एक दिन वही करतब दिखाकर भीख मांगने वाली "मीना " राष्ट्रीय एथलेटिक्स स्पर्धा मे प्रथम आकर स्वर्ण पदक से सम्मानित हुई ।।
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– संजय डागा
देवी अहिल्या कालोनी
हातोद
जिला इन्दौर
मध्यप्रदेश
मो.9752454985
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17-01-1967