शिवाजी का रण



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काप उठी थी धरती सारी 
जब से बढ़ा था अत्याचार। 
तब जन्म लिया था महापुरुष ने 
तब से बढ़ा था सद्सदाचार। 

वीर अथक सा पाउ जब मैं 
लगा मराठा का दरबार। 
वीर डटे हैं ऐसे देखो 
शिव राजे के वीर हजार। 

थर- थर काँपे दुश्मन भागे 
जब से सुन ली ये ललकार। 
रिम -झिम, रिम- झिम बादल बरसे 
जैसे गाए मेघ -मल्हार। 

शत्रु देश के कितने भी हों 
कैसे भी हो जवान खुमार। 
देख शिवाजी की चमकी हैं 
अंबा माई की की तलवार। 

जीतन लागो ऐसे जंग में 
उस सेना में वीर शुमार। 
दिव्य -अलौकिक लागो ऐसे 
शिवराजे की हैं सरकार

Category:Poem



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Written by नरेंद्र सिंह भाकुनी

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