दुविधा चाहे कितनी भी बड़ी हो
मैंने उन्हें मुस्कुराते ही पाया ,
ऐसे ही नहीं वेद-पुराणॊ ने मेरे
माधव को जगतगुरु बताया ।
जन्म हुआ कारावास मे
पर जग मे धर्म का प्रकाश फैलाया।
ऐसे ही नहीं वो गोकुल का कान्हा
द्वारकाधीश कृष्ण कहलाया।
दुष्ट पापियों ने माया का
कितना ही षड्यंत्र रचाया,
पर मायापति केशव का
कोई बाल ना बाॅंका कर पाया।
बिना शस्त्र उठाये ही पांडव को
महाभारत का रण जिताया हैं,
स्त्री के सम्मान का सबक
जगत को सिखाया है ।
मित्रता और प्रेम का भी
मेरे ठाकुर ने हैं ज्ञान दिया,
सुदामा और राधा को प्रभु ने
अपने हृदय में स्थान दिया ।
निंयनवे गाली सहकर भी
सौवें मे गर्दन काट दिया
सामर्थ और घमंड का
भी अंतर का प्रमाण दिया।
नरकासुर को मार 16000
रानियों का उद्धार किया
उनका चरित्र बचाने प्रभु ने
अपना सम्मान बलिदान किया ।
शक्ति, बुद्धि का घमण्ड नही
बिना लड़े महाभारत जीता दिया
धर्म स्थापना के खातिर प्रभु ने
विराट रूप भी दिखा दिया ।
गीता का दिया ज्ञान रणभूमि मे
अर्जुन को कृतार्थ किया
पाव मे बाण लगने को कृष्ण ने
माध्यम प्रस्थान का बना लिया ।
कवि- कन्हैया यदुवंशी
!त्यागात शांति अनंतरम!
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