सत्यम  शिवम् सुंदरम ' हो  सृजन "

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12 Jun '24
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एक आलेख आपके समक्ष ...

' सत्यम  शिवम् सुंदरम ' हो  सृजन " 

कलम  के साधक  ,सरस्वती   के वरद   पुत्रों पर गहन दायित्व  है।  साहित्य में जो बिखराव  , भटकाव, सस्तापन  आज ध्वनित हो रहा है ,उसके पीछे  भी बहुत  कारण  हैं।   प्राचीन साहित्य के आज भी हम पुजारी  हैं क्योंकि उसमें  भाषा   और   भाव दोनों की उत्कृष्टता  के साथ  जीवन मूल्यों का सुंदर समावेश  होता  था  जो एक ज्योतिर्मय  मशाल   की  तरह सदियों  से आज  तक कालजयी है । मानवता को रोशन कर रहा है। पथ प्रदर्शित कर रहा है ,उस जीवन के लिए  जो  सच्चे   अर्थों   में जीवन कहलायेगा। जो एक लाइट हाउस की तरह  आज भी हमारे समक्ष  उद्धरण  के रूप  में  हर  कहीं  शामिल   हैं, क्योंकि वह सर्वकालिक,  प्रासंगिक  है। 

  व्यक्तित्व से कृतित्व  का निर्माण - अगर  कहा जाये तो कुछ अनुचित नहीं होगा क्योंकि, शब्दशिल्पी   की अपनी  सोच , अनुभव, भाव   और  परिस्तिथियों से कहीं न कहीं   लेखन प्रेरित  होता  है। आपकी विचारधारा और सोच  कितनी  तर्कसंगत  गांभीर्ययुक्त, गरिमापूर्ण है ! सत्य का कितना  प्रकटीकरण  करती   है!  कितनी सार्थक और सौद्देश्यपूर्ण  है ! किस तरह  जनमानस में उतर  कर आशा , स्फूर्ति और ओज का संचार करती हैं ! कितनी रचनात्मक  और सकारात्मक है ! ये गहन बिंदु है जिन पर सभी को मनन- चिंतन करना आवश्यक है। 

                                     लेखन   अगर नवाचार लिए, नव चिंतन  से प्रेरित ,स्वस्फूर्त  न हो , आशाओं ,  सकारात्मकता  का संवाहक न  हो , उद्देश्यहीन होकर  सामाजिक सरोकार से विलग  'लकीर  का  फ़कीर ' या नकारात्मकता का प्रचारक  हो ,सिर्फ़ आत्ममुग्धता से ग्रसित होकर छद्म  सम्मानों की  दौड़ में शामिल हो । भ्रम और नकारात्मकता  को पोषित करता हो , जीवन  मूल्यों से , आध्यात्मिकता से अनुप्रेरित   न होकर  सिर्फ़ दुःखाकर्षण से ग्रसित होकर झूठी  वाहवाही  लूटने के लिए लिखा जाता हो । जबरन विवादास्पद मुद्दे  उठाता  हो  तो ऐसी कलम को उठाकर रख देना  ही  उचित होगा।  

समस्याएंँ  हैं अगर तो  समाधान भी  हैं।  आज का साहित्यिक परिदृश्य उत्कृष्टता से  , आध्यात्मिक चिंतन  से दूर ,सस्तेपन व चलताऊ भाषा   का शिकार   हुआ  जा रहा है। दो अक्षर लिखकर  साहित्यकार की श्रेणी में ही नहीं, वरन सब मंचों पर छा जाना  चाहते हैं।  सोशल मीडिया ने भी अनेक इस तरह के छद्म व आत्ममुग्ध साहित्यकार खड़े किये हैं ,जो जैसे ही चार  पंक्तियांँ  लिखीं,उन्हें  सबके  सामने प्रदर्शित करने से लेकर , प्रकाशित करने के  अलावा जिसकी भी  मेल आई डी  प्राप्त  हो  उसे मेल करके   या  व्हाट्स  एप  से   अपनी   साहित्य सृजन प्रतिभा  का परिचय देना शुरू   कर देते   हैं।  सोशल साइट्स ने भी भाषा को बहुत तोड़ -मरोड़ दिया  है, ।  उसकी  गरिमा  , उत्कृष्टता , मान -सम्मान  को  छिन्न-भिन्न किया   है  । साहित्य सृजन  सोद्देश्य , सकारात्मक , आशाओं और जीवंतता का संवाहक , प्रचारक बने । बहुत कुछ उत्कृष्ट पठन-पाठन करने के बाद ही  हम कलम हाथ में थामें और अपनी रचना धर्मिता का परिचय दें  सभी समाज को सही दिशा दे सकेंगे। सरोकारों  से जुड़े, सिर्फ़ समस्याओं , अवसाद , कुंठाओं का प्रचारक  न बने बल्कि    'सत्यम , शिवम् , सुंदरम ' का जयघोष करे। 

      @ अनुपमा श्रीवास्तव 'अनुश्री , भोपाल ,मध्य प्रदेश 

साहित्यकार,कवयित्री,रेडियो-टीवी एंकर, समाजसेवी

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Written by Anupama Anushri

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