सफर

यादों का

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15 Jul '24
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मैं मौत के सहारे चला

जिंदगी जीने के लिए

अश्क मुझे मिले 

सफर में पीने के लिए

 

सभी कांटो को चुभो लिया

हर दर्द को अपना लिया

ये जरूरी समान थे

सफर में निकलने के लिए

 

कई मिले अपनेपन की तरह

फिर छुट गए मुकाम की तरह

क्यूं कुछ लोग मिलते हैं

सफर में बिछड़ने के लिए

 

कभी यूं ही याद आते हैं

कभी भूलने पे याद आते हैं

पर कुछ यादें बनती है

सफर में भूलने के लिए

 

कुछ कसमें थीं, कुछ वादे थे

सदा साथ रहेंगे ये इरादे थे

बनते ही है ये वादे

सफर में टूटने के लिए

 

आँखे खुलते है बंद होते है

फिर बंद होकर खुलते है

खुलते ही हैं ये आँखें

अंत में मुंदने के लिए

Category:Poetry



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Written by vinod thapa

I am a resident of Delhi, the heart of India, and a writer entertaining readers by writing about his experiences. You may know me as a writer, poet, and author, but if you don't know me, it doesn't matter.

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