सन्यासी:: द वॉरियर ऑफ बंगाल
(संन्यासियों का समूह जाप कर रहा है, और अपने चिमटों,डमरू को भी बजा रहा है।)
हर हर शंभू नमः शिवाय ।
नमः शिवाय प्रभु नमः शिवाय।।
एक युवा सन्यासी:: गुरुदेव, आज कल मठ पर भक्तों का आना कम हो गया है!
अघोरानन्द: क्यों ?... क्या लोगों की भक्ति और आस्था खत्म हो गई है या कोई विपदा आन पड़ी है,जिससे लोग अब अपने आराध्य का भी दर्शन पूजन करने नही आते हैं?
युवा सन्यासी: ये तो भगवान भूतेश्वर ही जाने महाराज जी ! लेकिन हमको भावी समय में किसी बड़ी विपदा के लक्षण महसूस हो रहे हैं!
अघोरानंद: अरे नही……! यह संसार ही नश्वर है,भौतिक जीवन में काहे की विपदा और किसका मोह…! जीवन ,मृत्यु की डोर तो अपने प्रभु भूतनाथ के हाथ में ही है..हम सभी तो साधन मात्र हैं!
उसके बाद शांति छा गई।
1763 का बंगाल जो अब ईस्ट इंडिया कंपनी और नवाबों के शासन में पूरी तरह से कुशासन और अराजकता के माहौल में था।।घने जंगलों के बीच बने मां काली के मंदिर के आंगन में एक ऊंची चट्टान पर अपने शरीर में भस्म लपेटे,मस्तक पर लाल तिलक और सिर के ऊपर जटाओं को समेटकर ,आपस में ही लपेटे हुए एक साधू वेश में व्यक्ति बैठा था। पास में ही जल रही लकड़ियों की हल्की रोशनी में भी स्पष्ट दिख रहा था, कि उसकी भुजाओं में और गले में रुद्राक्ष की मालाएं थी, और लाल लाल आंखों के साथ अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल को पकड़े हुए था। यह गुरु अघोरानंद थे जो इन नागा साधुओं के समूह के प्रमुख थे। सामने ही लगभग बीस संन्यासियों का समूह बैठा था,और सभी के हाथों में शस्त्र थे।
रात अपनी गति से बढ़ रही थी और इस शांत रात में जंगल से कुछ दूर बहती गंगा नदी में उठती ऊंची ऊंची लहरों से उठने वाली आवाज या कभी कभी जंगल के चमगादड़ों या जीवों और झींगुरों की आवाजों से ही शांति भंग होती थी।
(संन्यासियों के समूह से एक सन्यासी ने अघोरानंद की ओर देखते हुए कहा,)
“महाराज आज तो अंग्रेजों ने हद ही पार कर दी है! अभी तक अंग्रेज ढाका के कारखाने में ही केवल बुनकरों से बेगार करवाते थे ,और इस भीषण अकाल में भी किसानों से दोगुना लगान वसूलते थे,मगर….!
(उस अधेड़ उम्र के सन्यासी ने क्रोध में कंपकपाते हुए कहा..)
“मगर अब तो अंग्रेजों ने परवाना निकाल दिया है कि सभी धर्म स्थानों से और मठों की जमीनों से भी लगान वसूल किया जाए!”
अघोरानंद जो अभी तक शांत बैठे थे उन्होंने एक बार सभी संन्यासियों को देखा और उनके चेहरे पर आए भावों को उस धुंधली रोशनी में भी पढ़ने का प्रयास करते हुए कहा..
अघोरानंद::
“ये अत्याचारी अंग्रेज हमारे यहां के कायर राजाओं की मदद लेकर यहां व्यापार करने आए थे… लेकिन अब ये यहां लूट,अत्याचार और भ्रष्टाचार पर उतर आए हैं।हम संन्यासी भले ही हैं, लेकिन हमारा धर्म है, कि अपने देश,अपने धर्म की रक्षा करें, भले ही इस काम में हमे अपने प्राणों की आहुति देनी पड़े।”
(कुछ पल तक शांत रहकर अघोरानंद ने कहा,)
”अपने सभी मठों में खबर पहुंचाओ कि कोई भी इन अंग्रेजों को किसी भी मठ से लगान नही देगा ,और न ही इन अत्याचारियों को किसानों और गरीबों पर अत्याचार करने देगा। हम सभी एकजुट होकर इनका सामना करेंगे।
परित्राणाय साधूनाम,विनाशाय च दुष्कृताम ।।
आज हम सभी मिलकर शपथ लेते हैं, कि इन अंग्रेजों की नींद हराम कर देंगे।”
(अभी अघोरानंद ने अपनी बात को पूर्ण ही किया था,एकाएक एक सन्यासी ने खड़े होकर कहा,)
“गुरुदेव ,क्षमा चाहता हूं! लेकिन एक बात कहनी है,आज दिन में जब मैं भिक्षा के लिए नारायणपुर गांव गया था, तो वहां की स्थिति देखकर मैं भी एक बार विचलित हो गया था।”
अघोरानंद::
“क्यों! वहां ऐसा क्या हो गया?”
सन्यासी::
“गुरुदेव, नारायणपुर के बहुत से लोग मलमल के बेहतरीन बुनकर हैं,और मलमल को बुना करते थे। लेकिन इन अंग्रेजों ने अपनी निर्दयता से इनमे से अधिकांश कारीगरों को ढाका के कारखाने में काम करने के लिए बुला लिया है, और अपने इस कारखाने में इनसे काम करवाते हैं,कभी कभी तो उनको उनकी मजदूरी भी नही देते हैं केवल बेगार करवाते हैं,और इस मलमल को विदेश में भेजकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। और अगर कोई मजदूर इनसे अपनी मजदूरी मांगता है, तो उसकी अंगुलियों को काटकर उसे अपाहिज बना देते हैं! गुरुदेव नारायणपुर में इन अपंगो की दशा देखकर और उनके परिवारों में फैली गरीबी देखकर मैं विचलित हो गया और मुझसे भिक्षा तक नहीं ली गई।”
अघोरानंद ने अपने माथे पर उभर आई चिंता के साथ अपनी बात कही::
“यह तो सरासर अन्याय और हिंसा की जा रही है इन अंग्रेजों द्वारा! इनको सबक सिखाना ही होगा और इन असहाय कारीगरों को न्याय दिलाना ही होगा…!”
(कुछ समय की शांति के बाद,)
अघोरानंद ::
“कल शाम तक अपने सभी मठों में संदेश भेज दो, कि सभी सन्यासी अपने अपने शस्त्रों के साथ आने वाली अगली पूर्णिमा को यहां एकत्र हों,हम अंग्रेजों के ढाका के कारखाने पर हमला करेंगे और उनको सबक सिखाएंगे।”
इसके बाद सभी सन्यासी अपनी अपनी साधना के लिए मठ के भीतर चले गए।
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संन्यासियों के समूह का सामूहिक वार्तालाप::
पहला सन्यासी: गुरुदेव ने न जाने क्यों बुलाया है?
दूसरा सन्यासी::अरे क्या तुमने अपने फरसे पर धार चढ़ा ली है!
तीसरा सन्यासी:अंग्रेजों की शामत आने वाली है अब..तभी गुरुजी ने हमको यहां बुलाया है शायद! अरे अपनी कटार भी रख लो त्रिशूल के साथ!
चौथा सन्यासी::रख ली गुरुभाई और तुमने अपना चाकू ले लिया क्या!
सन 1763 की अक्टूबर का महीना था। हवा सर्द हो गई थी,शीत का अहसास होने लगा था। अभी रात का दूसरा पहर ही था,एकाएक अघोरानंद मठ से बाहर की ओर आए आज मस्तक पर लाल तिलक के ऊपर लाल कपड़ा बांध रखा था और दाएं हाथ में चमचमाता त्रिशूल, बाएं हाथ में एक गेरुआ रंग की पताका जिस पर ओम लिखा था।
अघोरानंद ने बाहर आते ही संन्यासियों को संबोधित करते हुए कहा,
“हर हर शंभो महादेव!”
संन्यासियों का समूह:: “हर हर शंभो !”
अघोरानंद::
“आप सभी को आज मैने विशेष कार्य के लिए बुलाया है,हम सभी ईश्वर की आराधना करते हैं, लेकिन हमको अधर्म,अन्याय और शोषण के विरुद्ध भी खड़ा होना होगा……संघर्ष करना होगा और रक्षा करनी होगी अपने लोगों की….! अपनी मिट्टी की ….. अपनी मातृभूमि की ऐसे आतताइयों से जो हमको लूटने आए हैं,हम पर अत्याचार करने आए हैं..व्यापारियों के वेश में! आज हम ढाका का कारखाना इन अंग्रेजों से मुक्त कराएंगे और आजादी दिलाएंगे उन बुनकरों को जिनको इन गोरों ने बेगार पर लगा रखा है..क्या तुम सब तैयार हो
संन्यासियों का सामूहिक स्वर::
“रक्त की अंतिम बूंद तक जी जान से हम तैयार हैं,ऐसे विधर्मियों के विरुद्ध लड़ने के लिए…आप बस आज्ञा दें!”
और अघोरानंद का संकेत पाते ही सभी उसके नेतृत्व में चल दिए ढाका की ओर बेपरवाह और निडरता के साथ।
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जहाज पर तैनात पहला सैनिक:भाई मैंने तो सुना है,अब यहां पर ब्रिटिश सरकार होने जा रही है?
दूसरा सैनिक: ब्रिटिश सरकार हो ही गई है,कहां किसी नवाब और रियासत की सुनी जाती है…हर जगह तो अपनी टुकड़ियों और सैनिकों को तैनात कर दिया है!
पहला सैनिक: सो तो है ही..और साथ ही फौज के लिए खाना खर्चा भी ले रहे हैं।
दूसरा सैनिक: फिर…अब एक तरह से अंग्रेजी सरकार तो हो ही गई है।
चांदनी रात की रोशनी में साफ देखा जा सकता था,नदी के किनारे पर अंग्रेजों का एक जहाज लंगर डाले खड़ा था।इस जहाज पर सुरक्षा के लिहाज से कुछ अंग्रेज सैनिकों को भी भेजा जाता था जो इस वक्त भी वहीं थे। लेकिन रात हो जाने और जहाज के लंगर डाल लेने के कारण सभी निश्चिंत हो चुके थे और आराम कर रहे थे..सिवाय दो सैनिकों के जो जहाज पर गश्त कर रहे थे और आपस में बात कर रहे थे
अघोरानंद:: हम सब अब पहुंचने ही वाले हैं,सभी लोग तैयार रहो और सावधान रहना!
संन्यासियों का सामूहिक लेकिन फुसफुसाहट भरा स्वर: हम सब तैयार हैं!
कारखाने के फाटक पर भी दो अंग्रेज सैनिक पहरा दे रहे थे।
संन्यासियों का समूह नजदीक पहुंच चुका था,नंगे पांव और पीठ पर बंधे हुए फरसा,त्रिशूलों और भालों जैसे शस्त्रों के साथ। एकाएक अघोरानंद ने सभी संन्यासियों को रुकने का संकेत किया और फिर समूह को दो हिस्सों में बंट जाने का इशारा किया। पहला समूह जिसको जहाज पर हमला करके उसको कब्जा करना था उसका नेतृत्व एक युवा संन्यासी को दिया , और शेष टुकड़ी को अपने पीछे पीछे कारखाने पर हमला करने के लिए इशारा देकर चल दिया।
युवा सन्यासी: सभी लोग वगैर कोई आवाज किए मेरे पीछे पीछे ही आना….और हां सावधान रहना!
संन्यासियों की फुसफुसाती हुई आवाज: हम सभी ऐसा ही कर रहे हैं! बस आप आगे बढ़ते रहिए।
युवा संन्यासी के साथ कुछ और भी सन्यासी थे।सभी तट के पास पहुंच चुके थे।
एक ने आगे बढ़कर एक नाव में बंधी हुई रस्सी को फुर्ती के साथ काट लिया और उसमे बंधे लंगर सहित उसको अपनी कमर में लपेट लिया,फिर संकेत मिलते ही वो पानी में उतरकर बगैर आवाज किए धीरे धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाज की ओर बढ़ चला,उसके पीछे पीछे अन्य संन्यासियों ने भी उसका अनुकरण किया और चल दिए।।
जहाज के पास पहुंच कर उस सन्यासी ने अपनी कमर में बंधी रस्सी को खोला और तेजी से लंगर को ऊपर की ओर उछाल दिया, खट, की एक आवाज के साथ ही लंगर ऊपर जाकर जहाज की किनारी से फंस गया और रस्सी के सहारे वो सन्यासी जहाज पर चढ़ने लगा।
सन्यासी: (धीमी आवाज में ) मैने रस्सी को जहाज में फंसा दिया है,और ऊपर जा रहा हूं तुम सब भी वगैर कोई आवाज किए सावधानी से रस्सी को पकड़कर मेरे पीछे पीछे आ जाओ।
संन्यासियों का समूह: हां हम भी आपके पीछे पीछे ही आ रहे हैं।
पीठ पर बंधा फरसा ; मुंह में दबा चाकू उस सन्यासी को और भी कठोर दिखा रहे थे। कुछ ही पलों में वो जहाज के ऊपर था और पीछे से अन्य सन्यासी भी एक एक कर के पहुंच रहे थे।
जहाज के अगले हिस्से में गश्त कर रहे दोनो सैनिक निश्चिंत बैठ चुके थे और आपस में गप्प लड़ा रहे थे,
“खचाक…खच..”
अचानक अंधेरे में एक साए ने फुर्ती से आकर एक सैनिक की गर्दन पर फरसे से हमला किया और वो एक तरफ को लुढ़क गया। दूसरा सैनिक जब तक कुछ समझ पाता उससे पहले ही उसकी गर्दन पर भी किसी ने हमला कर दिया और वो भी अपनी जगह पर ही हिले डुले वगैर लुढ़क गया।
युवा सन्यासी:: इनके सभी हथियार कब्जे में ले लो!
अंदर जल रही रोशनी में कुछ सैनिक अपने अपने बिस्तर पर सो रहे थे और उनके हथियार एक तरफ रखे हुए थे,संन्यासियों ने उनके हथियारों को अपने कब्जे में ले लिया और सनिकों को घेर लिया, जैसे ही आंख खुली और अंग्रेज सैनिकों ने उठना चाहा।
सन्यासी: खबरदार अगर कोई भी होशियारी की तो सभी को मार दिया जाएगा..चुपचाप बैठे रहो!........इनको एक पंक्ति में बिठाकर रस्सियों से बांध दो!
उनको संन्यासियों ने एक एक करके रस्सियों से बांध दिया।
दूसरी तरफ अघोरानंद तेजी से ओट लेता हुआ कारखाने की ओर बढ़ रहा था और उसके पीछे पीछे बाकी सन्यासी, फाटक पर पहरा दे रहे सैनिक अब कुछ सुस्त पड़ चुके थे और उन्होंने अपनी अपनी बंदूकें भी एक तरफ रख दी थी।
“खच्च…फचाक..!!
एकाएक अघोरानंद ने ओट से निकलकर तेजी से एक सैनिक की गर्दन पर फरसे से हमला किया और पीछे से आए दूसरे सन्यासी ने दूसरे सैनिक को अपने त्रिशूल से यमलोक पहुंचा दिया। और उनकी बंदूकों को कब्जे में लेकर सन्यासी कारखाने में अंदर घुसे।
अंदर का दृश्य बहुत ही दयनीय था, बुनकर मलमल अब भी तैयार कर रहे थे, उस हल्की सी रोशनी में भी उनके धंसे हुए पेट ,गालों में पड़ गए गड्ढे और बदन पर लिपटे चिथड़े ही उनकी दशा और गरीबी बताने को पर्याप्त थे।
बुनकर (सामूहिक): (डरी हुई आवाज में) आप लोग क्या डाकू हैं? यहां हम लोगों के पास कुछ नहीं मिलेगा…हम लोग तो खुद इन गोरों की गुलामी कर रहे हैं!
अघोरानन्द: नही हम लोग डाकू नहीं है…हम लोग तो भारतमाता के बेटे हैं और तुम लोगों को इन गोरों के अत्याचारों से आजाद कराने आए हैं! डरो मत अब हम तुम्हारे साथ हैं!
एक संन्यासी ने छत पर ध्वज लगा दी और संकेत दे दिया हम सफल रहे!
सन्यासी ने कारखाने की मुंडेर पर भगवा ध्वज लगा दिया और हाथ में पकड़ी एक मशाल को लहराकर जहाज की तरफ विजय संकेत करते हुए तेज आवाज में कहा,
सन्यासी: हर हर शंभो!
प्रत्युत्तर में जहाज पर से संन्यासियों ने मशाल लहराकर विजय संकेत दे दिया।
ढाका का वो कारखाना जो अभी तक अंग्रेजों का था और जिसमे तैयार मलमल को विदेशों में बेचकर ईस्ट इंडिया कंपनी खूब मुनाफा कमाती थी अब संन्यासियों के कब्जे में पूरी तरह हो चुका था। और बंगाल प्रांत की उस सरजमीं पर एक ऐसे विद्रोह का आगाज़ हो चुका था जो आम जनमानस से लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी और बंगाल के नवाबी शासन तक पर भी प्रभाव डालने वाला था।
साथ ही एक चिंगारी भड़क उठी थी सन्यासी विद्रोह की….क्रांति की….और जुल्म के खिलाफ !
क्या हुआ ईस्ट इंडिया कंपनी में जब ढाका कारखाने पर संन्यासियों के कब्जे की खबर पहुंची?
बंगाल का नवाब क्या इस विद्रोह को रोक पाया?
संन्यासियों का अगला कदम क्या था इस विद्रोह के बाद?
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