गौ गायत्री गीता के संग , मां गंगा को नमन करें
रखें बनाए अविरल निर्मल, हम भरसक हर यतन करें
धन्य धरा गंगा को पाकर, गंगा मुक्ति हमें देती
अपने तटवासी जीवों को, स्नेह भाव से है सेती
गंगा को गंदा करने के, पापों का हम शमन करें
गौ गायत्री गीता के संग, मां गंगा को नमन करें।
मुगलों औ' फिरंगियों ने भी, गंगा का गौरव गाया
इसके जल को अमृत के सम, मनीषियों ने बतलाया
मां गंगा के पावन जल में, कभी न मल या वमन करें
गौ गायत्री गीता के संग, मां गंगा को नमन करें
गोमुख से गंगासागर तक, आंच न आने दें इस पर
जो इसमें अपशिष्ट बहाए, उसको हम रोकें सत्वर
मां गंगा के हित में हम सब, कष्ट मिले तो सहन करें
गौ गायत्री गीता के संग, मां गंगा को नमन करें
दूषित करें न गंगा का जल, नित आरती उतारें हम
गंगा तट पर पेड़ लगाकर, पर्यावरण संवारें हम
गंगा को गतिमय करने का, भार विनत हो वहन करें
गौ गायत्री गीता के संग, मां गंगा को नमन करें
पुण्य प्रदायक गंगा-दर्शन, विघ्न विनाशक अवगाहन
सारे भक्त मनाते रहते, यावज्जीवन मन ही मन -
अन्त समय मां की गोदी में, सुखपूर्वक चिर शयन करें
गौ गायत्री गीता के संग, मां गंगा को नमन करें ।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
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