मातृ शक्ति को नमन हैं ,
क्यों न हो ,
सुबह की पहली “ऊषा”
की शुरुआत से
मंदिर मे प्रथम “गौरी” गणेश प्रणाम
आफिस जाते ही प्रथम “पार्बती” स्वागतम प्रणाम ,
अधिकारी “लक्ष्मी” से कार्य लेकर “भावना” को देकर
दोपहर भोजन करने घर आना
कामवाली “कमला” से टकराकर
भोजन बनाने वाली “अन्नपूर्णा” से मिलना
शाम हो गई “संध्या” राह पर खड़ी ,
रात को सपने मे “सपना” “मिली”
रात दिन की अजब-गजब “माया”
ईश्वरीय रुप में हैं “दया”
करती हैं सदैव “करुणा”
रखती सबका ध्यान ,
“स्नेह – लता” बनकर
हमारी “श्रध्दा” भाव के साथ
“पूजा” – “अर्चना”, “जयमाला” आपको ,
“खूशी” रहे आप आनंदी रहकर ,
घर “संस्कृति” की “चेतना” देकर ,
“दर्शना” बनकर “ममता”रहे सदा
इसलिए कहते मातृशक्ति को
नमन ।
स्व-लिखित / मौलिक
- राजू गजभिये (सीताराम)
Raju Gajbhiye