सह्याद्री का रोमांच

यात्रा -वृतांत

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07 Jun '24
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प्रवासवर्णन

सह्याद्री का रोमांच- नासिक –मुंबई यात्रा

वैसे तो मै नाशिक में निवास करता हुं , जब जब किसी कार्यालयीन या निजी काम के चलते नासिक से मुंबई जाना होता है ,नासिक –मुंबई का यह सफर मै हर बार नया और बेहद रोमांचक महसूस करता हुं . यह सफर रेलमार्ग और महामार्ग दोनो तरीके से मुबई जाया जा सकता है और दोनो के अपना अलग अनुभव और अलग यहसास है सौंदर्य है.जिसे मै स्पष्ट रूप से बिते कई दिनो निरंतर महसूस करता आया हुं . शायद पहाडी ईलाके की विशिष्ट भौगोलिक रचना , घाटीयो भरे जंगल और टेडे-मेडे रास्ते और सुरंगो के कारण इस प्रवास में अन्य प्रवासो कि अपेक्षा ज्यादा दिलचस्पी पैदा हो जाती है |

भली भोर में जब प्राचीपर कोमल गुलाबी पखरन छिटकने लागती है, गर्भगुलाबी झिलमील प्रस्फुटीत होने  लगी हो, ईगतपुरी के आसपास होनेवाला सूर्योदय मन मोह लेता है . दूर दूर बिखरे हुये सह्याद्री के शिखर, प्रकृती की ऋतुजनित अंगडाई और घने जंगलो से पहाडी के उस पार से निकलने वाली सुरज की चहुओर बिखेरती स्वर्णिम आभा सह्याद्री के शिखरोपर जब बिखरती है मानो सह्याद्री पर स्वर्ग उतर आता है . पहाडो कि खाईयो से निकलकर छुती थंडी हवा ,चोटीयो पर होती  स्वर्णिम छुवन और तेज रप्तार से चलती रेल या कारे या बस  में मन को प्रसन्नता का हर बार अलगसा आनंद देती है. घोटी और ईगतपुरी की पहाडिया अपने आपमे विशिष्ट , वर्तुळाकार घेरा बनाती और की कई कई छोटी मोटी झिले समाती पहाडिया है   रप्तार से फैलती उदयमान सूर्य की रश्मिया हर शिखर, तलहटी और बीचवाले  मैदानी इलाके में जब भर जाती है मानो स्वर्ण का सरोवर सा प्रतीत होने लगता है।  जंगल  धीरे धीरे घना होता जाता है , और नागिन सी मुड़ती सड़क अलग अलग मोड़ो का साक्षात्कार करवाती है. हम सह्याद्री  की चढ़ान  शुरू करते है और कुछ ही अंतर पार करने पर शुरू होती है कसारा घाटी।  यह सह्याद्रि की बहुत टेढ़ी मेढ़ी  तीव्र चढान वाली और प्राकृतिक सम्पदा से सराबोर विस्तीर्ण घाटी है।  इस घाटी के मोड़ जितने खतरनाक उतने ही सौन्दर्यमयी और दिलचस्प है। यहाँ के जंगलो में फैले विभिन्न किस्म के पेड़पौधे, सागवान की घनी आबादी और तरह तरह की वनस्पतिया किसी के भी दिल को छूने के लिए पर्याप्त है। इन  दिनों ग्रीष्म अपनी चरमपर है और गर्मी का आलम भी ।  अन्य बिते  वर्षो से इस वर्ष गर्मी का अंदाज कुछ ज्यादा ही तेज है।  कपडे पहनो तो देखते ही देखते गीले हो जाते है और बदन से  निकालो तो ऐसे सूखते है जैसे कभी गीले हुए ही न थे. धीरे धीरे सूरज चढ़ने लगता है और लहुलुहान कर देनेवाला ग्रीष्म अपना प्रताप दिखाने लागता है . 

      इन  दिनों सह्याद्रि की घाटियों में दिल लुभानेवाला कोई वृक्ष है तो वह अमलताश है।  अमलताश अपने शुरुवाती चरनमें जंगल और सड़को के इर्दगिर्द छाता जा रहा है और इसके मनोरम सौंदर्य का कोई सानी  नहीं।  अमलताश के घुंघरुओं की खनक से उपवन और  जंगल घायल होने लगे है ।  सह्याद्रि की तलहटी और गहरे जंगलो  में जहाँ कही भी अमलताश विद्यमान है अपनी किलकारियों से गूँज उठा है।  अमलताशो के गर्भनाल घुंगरू फूटते जा रहे  है और स्वर्णिम पंखुरियों की स्वर्णिम बिखरन से घाटी- घाटिया  पटती जा रही है।  अमलताशो के दिलकश गजरो ने सबके प्राण मोह लिए है और कसारा घाटी के सह्याद्रि शिखर अमलताशो के गहनों से सज्जीत ,पुलकित और महिमामंडित होते जा रहे है। दूसरा दिलखेचक समा वृक्षराज पिपलो ने निर्मित कर रखा है।  ओघड बने पीपल वृक्षोंपर पर्णबहार का मौसम है और  बहुत ही नाजुक ,मासूम ,गर्भार पत्तिया पीपल के वृक्षोंपर झिलमिलाने लगी है।  हर पीपल अनूठे और रोमांचक सौंदर्य से भर उठा है , कमलपत्तियों से हवाएं मस्ती करने लगी है ,पत्तियों से दिलकश संगीत की धुनें उठने लगी है और पीपल हरियाते खिलखिलाते और गाते नजर आने लगे है. प्रचुर प्राणवायु के प्रदाता पिपलो ने मुंबई के रास्तो ,लोहमार्ग के आसपास  और घाटी के सौंदर्य में चार चाँद लगा दिए है।  पिपलो के संगीत से  घाटिया भरती जा रही है। ऐसे  गरमागरम माहौल में गुलमोहरों की दस्तक को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है ? गुलमोहर छाने लगे है , अपने लालीलाल पेशकश से गरजते जा रहे है नाशिक से लेकर घाटी के रास्ते , और ठेट मुंबई तक रास्तो के इर्दगिर्द गुलमोहर अपनी लालिमा का लालीलाल लाल सलाम करते नजर आ रहे है। 

        कसारा घाटी से गुजरना अपने आप में रोमांचित कर देनेवाला अनुभव है. टेढीमेढी सर्पिली सडक , अजस्र पाषाण के उंचे उंचे शिखर, गहरी खाईया , खाईयो में व्याप्त विभिन्न किस्म की वनचरी ,रोमांचकारी और खतरनाक मोड और दूर दूर फैले सह्याद्री के शिखर सब कुछ मन मोहक है।  यहाँ का मौसम हर ऋतू में अलग अंगडाई लेता है ,वर्तमान में ग्रीष्म ऋतू कि भंगीमाओ से आपको मै परिचित करा रहा हुं  इसके अलावा सर्दियो में कसारा घाटी के निसर्ग का रूप  इससे ज्यादा अलंकारिक , गूढ और नयनरम्य होता है. कोहरे कि धुंध में खोया सह्याद्री, घाटीयो से उठते कोहरे के बादल , कही कही धुंध में नजर  आते झरने और नयनमनोहर वनलताये। सब कुछ इतना मनोहर ,आल्हाददायी और रोमांचक होता है मानो स्वर्ग उतार आया हो सह्याद्रीपर। यह तो ग्रीष्म और सर्दियो कि बात हुई , बारीश में कसारा और सह्याद्री का वर्णन करने के लिये स्वतंत्र आलेख की जरुरत है।  बारीश में कसारा घाटी का सह्याद्री किसी अजुबे से कम नही होता। सह्याद्री के गिरते प्रपातो से गुजरना बस स्वर्ग कि अनुभूती है।  इंद्रधनुष्य्यो का खेल , धूप छाव कि लुकाछुपी ,सह्यद्री के हरीतम शिख्ररो से गिरते अनगिनत  प्रपात और बादलो के सरकते जमघट सब कूछ केवल अवर्णनीय ,शब्दो से परे। बारीश में सह्याद्री घाटीयो को अनुभव करना स्वर्ग कि सैर करना है। 

सफर के इस पडाव में सह्याद्री कि ओट में छिपे घोटी और ईगतपुरी के रास्तेसे कूछ ही दुरी पर प्राचीन कावनई तीर्थक्षेत्र है, जो नाशिक के कुम्भमेले  का मूल और पौराणिक स्थान है. पुराने समय में नाशिक और त्रिंबकेश्वर में लगनेवाला कुंभ इसी स्थान से शुरू होता था। किवदन्ति ऐसी है कि इस  स्थान पर स्नान करने गंगासागर नहाने का पुण्य प्राप्त होता है . यह वही जगह है जहांपर कपिलमुनीजी  ने अपनी मां को सांख्यशास्त्र का उपदेश देकर स्वर्ग भेजा था. वनवास के दौरान भगवान राम और शिवजी कि भेट इसी स्थान पर हुई थी . संत ज्ञानेश्वरजी ने इस तीर्थ कि भेट कि है और संत रामदास और शिवाजी महाराज कि भेट जिस स्थान पर हुई यह वही स्थान है . युध्द में लक्ष्मण को शक्ती लगने के बाद संजीवनी बुटी लेने हनुमानजी जब इस तीर्थ के उपरसे जा रहे थे कालनेमी राक्षस ने इसी जगह पर हनुमानजी को जब रोका, उन दोनो के बीच भीषण संघर्ष हुआ जिसमे हनुमानजी ने कालनेमी को मार गिराया उसी कालनेमी का अपभ्रंश होकर इस स्थान का नाम कावनई पडा.  आगे कुछ ही दुरीपर इगतपुरी है इगतपुरी को महाराष्ट्र का चेरापुंजी कहां जाता है . सह्याद्री के बिचोबीच बसा  हुआ ईगतपुरी निसर्गरम्य एव प्राकृतिक सौंदर्य से सारोबोर है और सबसे खास बात यह कि ईगतपुरी के निकट धम्मगिरी पर्वत पर  बुद्ध विपश्यना ध्यानकेंद्र स्थित है यह प्रशिध्द स्थान विपश्यना ध्यानपद्धती  के लिये भारत एव विदेशो में भी जाना  जाता है . दुनिया के सभी हिस्सो से ध्यानमार्गी लोग यहा आकर अपने आस्तित्व कि टोह लेते है. इसी पर्वत शृंखला में कूछ ही दुरी पर टाकेद नामक तीर्थक्षेत्र है जहा पर जटायू और रावण का युद्ध हुआ था. अंतिम सांस गिनते जटायू के पास जब रामजी पहुंचे तब जटायू की मुक्ती के लिये उन्होने भूमी में बाण मारकर पंचनदीयो का तीर्थ निर्माण किया और जटायू को पिलाते हुये जटायू ने रामजी कि गोद में प्राणत्याग किये. वहां से करीब २५ किमी दुरीपर इसी पहाडी शृंखला में ब्रम्हगिरी पर्वत कि तलहटी में आद्य ज्योतिर्लिंग त्रिंबकेश्वर स्थित है .

 आगे कसारा गांव जैसे ही हम छोडते है , महानगरी मुंबापुरी के नजारे दृष्टिगोचर होने लगते है। महानगरी मुम्बापुरी ! सबसे अलग थलग नगरी।  मुंबई का दर्शन वाकई अपने आप में स्तम्भित कर देनेवाला है।  ऊँची ऊँची महाकाय इमारते, गगन छूते मीनार ,मायानगरी का अजीबोगरीब मायाजाल ,उद्योगनगरी, मुंबई की जीवनरेखा लोकल रेल ,अन्दाधुन्ध भागती भीड़ ,मुंबई का पाववड़ा और विशालकाय अरबी समुद्र सब कुछ विस्मयजनक है। यहाँ  महानगर की जितनी कृत्रिमता है , उतनी ही समुद्र की प्राकृतिकता इसलिए मुंबई कृत्रिमता  एवं प्राकृतिकता का आश्चर्यकारक गठजोड़ है।  अभी तक के सफर में जो प्रकृति एवं सह्याद्रि का विहंगम दर्शन हुआ इससे ठीक विपरीत मायानगरी का नजारा है और आखिरी छोर  पर फैला अरब समुद्र फिर प्रकृति से अभिन्न रूप से जोड़ देता है।  कुलमिलाकर समतल -शिखर -महानगर और समुन्दर का अमर्याद दर्शन कराता यह नाशिक -मुंबई का विहंगम सफर है। मैं जब  भी इस सफर पर निकल पड़ता हूँ , नित नए रोमांच से भर जाता  हूँ। हर बार का अनुभव अलग अनुभव होता है. और मैं अपने आप में समृद्ध होता रहा हूँ।

संजीव आहिरे 

साईरत्न कॉम्प्लेक्स ,फ्लैट नं -२ 

गोपालनगर ,अमृतधाम ,पंचवटी 

नाशिक (महाराष्ट्र )

संपर्क – ९१३०७४९९८०

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Written by Sanjeev Ahire