विश्व शान्ति के साधक : भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी

प्रेरणापुरुष

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24 Jul '24
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"जिनका हर संकेत बताता -

  अमर मरण की राहें 

  जयध्वज ऊंचा रखने वाली 

  हैं जिनकी दृढ़ बाहें,

  जिन पर गर्वित यह जन-मन है 

  उनको मेरा कोटि नमन है।"

                     - यह कहकर कवि जानकी प्रसाद श्रीवास्तव 'शाश्वत' ने जिन्हें अपना कोटि नमन निवेदित किया है, उन्हीं महामानवों की सुदीर्घ शृंखला की एक अत्यन्त सुदृढ़ कड़ी के रूप में सुख्यात हुए हैं भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी ( 25 दिसम्बर 1924 से 16 अगस्त 2018 )। वाजपेयी जी के विराट व्यक्तित्व को शब्दायित करने का प्रयास अनेकानेक शब्द-शिल्पियों ने अनेकानेक प्रकार से किया है। सबकी अपनी-अपनी सामर्थ्य है, सीमाएं हैं। तथापि, इस समय मेरे मानसपटल पर कौंध रही हैं कीर्तिजयी कवि धनंजय अवस्थी की एक कविता, जो वाजपेयी जी के जीवनकाल में लिखी गई थी। प्रस्तुत हैं कविता की कुछ पंक्तियां-

"तुम हिमालय के शिखर हो 

  सिन्धु का वैभव अतल हो 

  लक्ष्य की आराधना में 

  बद्ध-प्रण निर्भय अटल हो।"

                   अपनी कविता में अवस्थी जी ने कीर्तिशेष अटल बिहारी वाजपेयी को जिन विभिन्न विशेषणों से विभूषित किया है, वे हैं - जागरण के मंत्र-शिल्पी, संगठन की अवधारणा, चिर युवा, गरलपायी, सर्जना-सरोवर के सुरभित कमल, तपस्वी, व्रती, न्याय-निष्ठा-मय, क्षेम के मंगल चरण, संस्कृति भागीरथी के सुफल, फूल से कोमल, बज्र से कठोर,  लोकमानस के नयन, राष्ट्रकुल की अस्मिता, सद्भावना का दीप, त्यागी-विरागी और धुआं मन राजनीतिक मंच के उजले पटल आदि। निस्संदेह, अटल बिहारी वाजपेयी इन सभी विशेषणों से विभूषित रहे हैं। साथ ही, आप मां वाणी के विशेष कृपापात्र, आजीवन लोकमंगल को समर्पित, साहित्यकारों के प्रेरणास्रोत, ख्यातिलब्ध मूर्धन्य विद्वान, अहोरात्रि राष्ट्र की आराधना में लीन, राजभाषा हिंदी के धुरंधर ध्वजवाहक तथा सच्चे अर्थों में भारतरत्न ( 2015 ) थे।

                          जी हां, अटल बिहारी वाजपेयी नाम है हिंदी के एक सर्वमान्य काव्यपुरुष का जिनके काव्य संकलन 'मेरी इक्यावन कविताएं', 'कैदी कवि की कुण्डलियां', आदि ने उन्हें काव्य-जगत में सुप्रतिष्ठित किया। 'संसद में चार दशक' लिखकर उन्होंने कुशल गद्यकार के रूप में भी ख्याति अर्जित की। उन्होंने पं. दीनदयाल उपाध्याय के साथ 'राष्ट्रधर्म', 'वीर अर्जुन' आदि के सम्पादन में अपना अमूल्य योगदान देकर एक प्रखर पत्रकार के रूप में भी अपनी पहचान बनायी। कवि अटल बिहारी वाजपेयी का स्पष्ट मानना यह है कि -

"आदमी की पहचान 

  उसके धन या आसन से नहीं होती 

  उसके मन से होती है।

  मन की फकीरी पर कुबेर की

  सम्पदा रोती है।"

                    दीर्घ काल तक लक्ष्मण की नगरी लखनऊ को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी अतुलित ऊर्जा-सम्पन्न, किसी सुपर कम्प्यूटर या रोबोट जैसी यांत्रिकता से युक्त रहे। उन्होंने एक साथ अनेक क्षेत्रों में सफलता के मानदंड स्थापित किए। उन्होंने कभी परेशानियों की परवाह नहीं की, चुनौतियों से नहीं घबराए, प्रत्युत् लिखकर छोड़ गए -

"हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,

  आंधियों में जलाए हैं बुझते दिये।"

                     'न दैन्यं न पलायनम्' अटल जी का जीवन-मंत्र रहा है। उनमें गजब की जिजीविषा थी। वे सदैव यही संदेश देते रहे कि -

"आदमी को चाहिए कि वह जूझे 

  परिस्थितियों से लड़े 

  एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े।"

                       भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी अत्यंत सुलझे हुए व्यक्ति थे। वे साहित्य-कला और राजनीति के मर्मज्ञ थे। अध्ययन में उनकी अभिरुचि ही उन्हें सतत संघर्ष करने की क्षमता प्रदान करती रही।

                       राष्ट्रदेवता के चरणों में अपना तन-मन-धन समर्पित करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी एक कुशल संगठनकर्ता भी रहे हैं। उन्होंने एक-दो नहीं, चौबीस राजनीतिक दलों की एकजुटता बनाए रखकर अपनी सरकार सफलतापूर्वक चलायी। उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय प्रतिरोध की परवाह न कर पोखरन में परमाणु विस्फोट का परीक्षण करवाया और लालबहादुर शास्त्री के नारे 'जय जवान, जय किसान' में 'जय विज्ञान' जोड़कर विश्व में भारत को गौरवान्वित किया। उनकी एक कविता की पंक्तियां लोगों की जबान पर चढ़कर बोलती रहीं -

"विपदाएं आती हैं आएं, हम न रुकेंगे, हम न रुकेंगे।

  आघातों की क्या चिन्ता है, हम न झुकेंगे, हम न झुकेंगे।।"

                        तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण तो करवाया, परन्तु, साथ ही साथ अपनी कविता में यह घोषणा भी की कि-

"हम जंग न होने देंगे! 

  विश्व शान्ति के हम साधक हैं, जंग न होने देंगे 

  हमें चाहिए शान्ति, जिन्दगी हमको प्यारी 

  हमें चाहिए शान्ति, सृजन की है तैयारी 

  हमने छेड़ी जंग भूख से, बीमारी से 

  आगे आकर हाथ बटाए दुनिया सारी।

  हरी-भरी धरती को खूनी रंग न लेने देंगे 

  जंग न होने देंगे।।"

                             विरल प्रतिभा सम्पन्न, स्वनिर्मित विश्वकर्मा व्यक्तित्व वाजपेयी जी कठोर परिश्रम, नियमित जीवन, व्यापक दृष्टि, उच्च विचार तथा सबके प्रति अपनत्व के पर्याय थे। वे सदैव यही प्रार्थना करते रहे -

"हे प्रभु!

  मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना 

  कि गैरों को गले न लगा सकूं 

  इतनी रुखाई कभी मत देना।"

                       'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की निरन्तर कामना में जीकर अटल बिहारी वाजपेयी ने समाज को, देश को और विश्व को भी अनेकानेक सौगातें समर्पित कीं। उन्होंने श्रमसाध्य, समयसाध्य और कष्टसाध्य जीवन जीकर न केवल देशवासियों के हृदय में वरन् विश्व भर में फैले मानवतावादियों के हृदय में जो स्थान बनाया, वह अमिट है, चिर स्मरणीय है। युगों-युगों तक लोग उनके विराट व्यक्तित्व और कालजयी कृतित्व से प्रेरणा पाते रहेंगे। अत्युक्ति नहीं है कवि देवदत्त आर्य 'देवेन्द्र' के इस कथन में कि-

"अटल-सा हो यदि अपना ध्येय,

  मिलेगा सबको अपना श्रेय।"

@ महेश चन्द्र त्रिपाठी 

 

 

Category:Literature



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Written by Mahesh Chandra Tripathi