रोटी की खुशबू से बढ़कर
खुशबू अन्य न होती।
रोटी की तलाश में दुनिया
भार दुखों का ढोती।।
रोटी जिन्हें नहीं मिलती वे
जाने क्या क्या करते।
रोटी जिन्हें सुलभ है वे भी
करते पाप न डरते।।
रोटी जो न जुटा पाते वे
कहते- किस्मत खोटी।
हे प्रभु! कोई रहे न वंचित
मिले सभी को रोटी।।
अन्न न हम बर्बाद करेंगे
आओ शपथ उठाएँ।
क्षुधित न रहे पड़ोसी अपना
उसे खिलाकर खाएँ।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी