ऐसी भी हैं कुछ लड़कियाँ
जो नहीं चाहती सजना सँवरना
बस जैसे तैसे जल्दी तैयार हो जाती हैं।
घर की सभी जिम्मेदारियाँ निभाती हैं बख़ूबी
अपनी सारी कमाई घर सँवारने में लगाती हैं
और कुछ समय बाद वो घर मायका बन जाता है।
लम्बी फूटपाथ को कदमों से नापती हैं
सिर्फ दस रुपये बचाने को
ख़ुद पूरा दिन उपवास हो जाता है
और चाहत सबको अच्छा खिलाने को।
धूल से धुंधली , सजावट होने लगती बेरंग
पर्दों की साज सज्जा, और सजी खिड़कियाँ
ऐसी भी होती हैं कुछ जिम्मेदार लड़कियाँ।
माँ की दवाई भाई के तरक्की की चिंता
दर्द दिल में दबाकर हमेशा मुस्कराती हैं
रो देती हैं दुपट्टे में मुँह को छिपाकर
बहुत सारे दर्द हम सबसे छिपाती हैं।
इतने दर्द सहकर इतना त्याग करके
फिर भी वो हमेशा पराये घर की कहलाती हैं
हम समझते भी नहीं शायद उनकी ये तपस्या
और वो हम पर अनगिनत एहसान कर जाती हैं।
हमारी तरह तकिये से उसकी आँखें बोलती हैं
राज़ सारे दिलों के अकेले में खोलती हैं
कभी मिले कोई ऐसी तो सुनूँगा तसल्लीबख़्श
वो सारी बातें जो हर रोज उसके दिल को कचोटती हैं।
कोई विघ्न न पड़ें उसे दर्द ज़ाहिर करने में
इसलिए हो जाऊँगा एक निर्जीव प्राण
और निहारूँगा एकटक उसकी सालों की दबी मुस्कान।
जितना कहे उससे ज़्यादा महसूस करूँगा
कुछ इस तरह उसका ख़्याल करूँगा
पूरी करेंगे ख़्वाहिशें उसके दिल की
मिलेगी जब वो जिम्मेदार लड़की....✍️
वास्तविक नाम गौरव सिंह है किन्तु लेखन "गुरु" के नाम से करता हूँ। कोई प्रसिद्ध लेखक या साहित्यकार नहीं हूँ। अपने मन की भावनाओं को व जीवन के विभिन्न अनुभवों को शब्दों में पिरोने का प्रयास करते हैं। आशा है आप सभी को मेरा लेख पसन्द आएगा और आप सभी का प्यार व आशीर्वाद सदा मिलता रहेगा। धन्यवाद!
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