सर्वप्रथम हम शीर्षक का अर्थ जान लेते हैं : सर्व+धर्म सम+भाव हिन्दू धर्म की एक अवधारणा है जिसके अनुसार सभी धर्मों द्वारा अनुसरण किए जाने वाले मार्ग भले ही अलग हो सकते हैं, किंतु उनका गंतव्य एक ही है।
इस अवधारणा को रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानन्द के अतिरिक्त महात्मा गांधी ने भी अपनाया था। हालाँकि ऐसा माना जाता है कि इस विचार का उद्गम वेदों में है, इसका अविष्कार गांधीजी ने किया था। उन्होंने इसका उपयोग पहली बार सितम्बर १९३० में हिन्दू मुस्लिम एकता जगाने के लिए किया था, ताकि वे मिलकर ब्रिटिश साम्राज्य का अंत कर सकें। यह भारतीय पंथनिरपेक्षता (Indian Secularism) के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है, जिसमें धर्म को सरकार एक-दूसरे से पूरी तरह अलग न करके सभी धर्मों को समान रूप से महत्त्व देने का प्रयास किया जाता है।
आज के युग मे भी हिंदुस्तान की राजनीती "धार्मिक और जातिगत" भेदभाव से पीड़ित ग्रसित है. इस प्रकार की विषम परिस्थिति में शांति सोहाद्र बनाए रखने और देश के सर्वांगीण विकास के लिए क्या "सर्वधर्म समभाव" एकमात्र रास्ता है?
वर्तमान मे गठबंधन की सरकार मे देश की सबसे बड़ी सत्ताधारी पार्टी चुनावों मे "सबका साथ सबका विकास" नारा देती है पर "धार्मिक और जातिगत" भेदभाव का माहोल बनाकर तीसरी बार चुनकर आती है। क्या उस पार्टी के नेतृत्व से यह पुछना हमारा हक़ नहीं है कि
1. आपके नारे में "सबका" मतलब कौन है? देश की "विशिष्ठ जनता" या सिर्फ जीत दिलवाने वाले “मतदाता”?
2. और अगर एसा नहीं है तो फिर चुनाव में इसे मुद्दा बनाया ही क्यों?
3. क्या यह सिर्फ एक चुनावी षड़यंत्र था?
4. क्या मतदाताओं को विभाजित करने हेतु इसे मुद्दा बनाया गया??
आज तक क्या हासिल हुआ और किसको हासिल हुआ इस मुद्दे से?
हमारा देश सविधान को मानता है क्या लिखा है सविधान में? इस मुद्दे पर हम अपने सविधान को क्यों भूल जाते है? जबकि उसकी कसम खाते है. मेरे गली मोहल्ले का हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई ब्राह्मण दलित गरीब अमीर सब एक है, फिर देश के कैसे अलग हो गए? कौन कर रहा है इन्हें अलग?
देश की एकता, अखंडता, शांति, सोहाद्र के माहोल को बिगाड़कर, झगडे फसाद और दंगे करवाकर कैसे होगा विकास? हर दिन किसी न किसी बेकार धार्मिक, जातिगत, सामाजिक मुद्दे पर अनशन, मोर्चे, हडताल से क्या मिल रहा है?
जब देश में ही एकता नहीं रहेगी तो सीमा पर कैसे लडेगा प्रहरी और किसके लिए लडेगा?
अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भारत एक बड़ी ताकत बन कर उभर रहा है? परंतु धार्मिक जातिगत वैमनस्य के कारण अन्दर से खोखला हो रहा है?
देश मे इंसान पैदा होने चाहिए, किसी भी धर्म के व्यक्ति हो पर इंसानियत होनी चाहिए। मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है और जीवन भर आएगा।
सर्वधर्म समभाव के बारे में कुछ और बातें:
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