उल्लू और गीध रहते थे, कभी एक ही घर में।
एक बार हो गई लड़ाई, तल्खी आई स्वर में।।
कहा गीध ने घर मेरा है, उल्लू बोला मेरा।
मेरा तेरा के चक्कर में, हुआ विवाद घनेरा।।
दोनों पहुंचे न्याय मांगने, रामचन्द्र के सम्मुख।
अपने-अपने ढंग से दोनों, ने कह डाला निज दुख।।
" जब से सृष्टि हुई पेड़ों की, तब से यह घर मेरा।
पिछली कई पीढ़ियों से यह, मेरे कुल का डेरा।।"-
- कहकर साश्रु नयन उल्लू ने, अपनी बात बताई।
जब वह मौन हुआ तब बारी, चतुर गीध की आई।।
बोला गीध कि जब से मानव, आया इस धरती पर।
तब से मेरे पूर्वज रहते, आए, यह मेरा घर।।
रामचन्द्र न्यायी थे, बोले - निश्चित मत यह मेरा -
घर उल्लू का है, पहले से, उसका वहां बसेरा।।
मानव से पहले पेड़ों की, भू पर सृष्टि हुई है।
अतः घर मिलेगा उल्लू को, वह ही आज जयी है।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी