भारतीय सांस्कृतिक दर्शन की धारा को प्रवाहित करने वाले भारतीय साहित्य में वसुधैव कुटुम्बकम का भाव सदैव समाहित रहा है। संत मनीषियों ने अपनी वाणी और कलम से जो साहित्य प्रकट किया है, वह निश्चित रुप से एक दिशादर्शन है, एक पाथेय है। पूरे विश्व को एक परिवार मानने का भाव केवल और केवल भारतीय साहित्य में ही मिलता है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और संत तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस ने सामाजिक समरसता के भाव का प्रवाहन बहुत ही गहनता से किया है। भारत के सभी संतों ने किसी न किसी रुप में सामाजिक समरसता और उसमें समाहित औदात्य की भावना को भी को वर्णित किया है। उदारता के भाव से अनुप्राणित भारतीय साहित्य निश्चित ही विश्व समुदाय को अहिंसा और सामाजिक समरसता का धरातलीय संदेश देता है। जिसकी वर्तमान में पूरे विश्व को अत्यंत आवश्यकता है। क्योंकि विश्व के कई देशों में जिस प्रकार से आतंकवादी हिंसा का वातावरण बना हुआ है, उससे निपटने के लिए भारतीय साहित्य पूरी तरह से सक्षम है।
भारत भूमि का कण-कण सामाजिक समरसता के भाव से स्पंदित है। इसका साक्षात संपे्रषण भारतीय समाज में भी दृष्टव्य है। भारत का हिन्दू समाज भारत के दर्शन को पूरी तरह से आत्मसात किए हुए है। हमारे देश के ग्रंथों में वह सभी विद्यमान है, जिसकी विश्व के सभी देशों को आवश्यकता है। हम जानते ही हैं कि अमेरिका के शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने जिस ज्ञान का साक्षात्कार कराया, वह भारत का ही दर्शन है और वही भारत है। शिकागो की धर्म सभा में अनेक विद्वान उपस्थित थे, उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी का प्रबोधन सुनने के बाद भारत के प्रति अपनी धारणा ही परिवर्तित कर दी। स्वामी विवेकानंद जी पूरा जीवन भारतीय दर्शन की जीवंतता को ही प्रकट करता है। इसलिए ही कहा जाता है कि भारत का अध्ययन करना हो तो स्वामी विवेकानंद के जीवन का अध्ययन किया जाए। इससे भारत की सांस्कृतिक धारा में गोते लगाने की दिशा का बोध होगा। इसी में से सामाजिक समरसता का प्रकाश भी देखने को मिलेगा।
विश्व का प्रथम महाकाव्य महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण है। जिसमें भेदभाव और छूआछूत को महत्व न देकर केवल सामाजिक समरसता की ही प्रेरणा दी गई है। वनवासी राम का सम्पूर्ण जीवन सामाजिक समरसता का अनुकरणीय पाथेय है। श्रीराम ने वनगमन के समय प्रत्येक कदम पर समाज के अंतिम व्यक्ति को गले लगाया। केवट के बारे में हम सभी ने सुना ही है, कि कैसे भगवान राम ने उनको गले लगाकर समाज को यह संदेश दिया कि प्रत्येक मनुष्य के अंदर एक ही जीव आत्मा है। बाहर भले ही अलग दिखते हों, लेकिन अंदर से सब एक हैं। यहां जाति का कोई भेद नहीं था। वर्तमान में जिस केवट समाज को वंचित समुदाय की श्रेणी में शामिल किया जाता है, भगवान राम ने उनको गले लगाकर सामाजिक समरसता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया है। सामाजिक समरसता के भाव को नष्ट करने वाली जो बुराई आज दिखाई दे रही है, वह पुरातन समय में नहीं थी। समाज में विभाजन की रेखा खींचने वाले स्वार्थी व्यक्तियों ने भेदभाव को जन्म दिया है।
वर्तमान में हम स्पष्ट तौर पर देख रहे हैं कि समाज को कमजोर करने का सुनियोजित प्रयास किया जा रहा है, जिसके कारण जहां एक ओर समाज की शक्ति तो कमजोर हो रही है, वहीं देश भी कमजोर हो रहा है। वर्तमान में राम राज्य की संकल्पना को साकार करने की बात तो कही जाती है, लेकिन उसके लिए सकारात्मक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। सामाजिक एकता स्थापित करने के लिए रामायण हम सभी को उचित मार्ग दिखा सकती है।
All subject
0 Followers
0 Following