बारिश की संध्या मदमाती

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21 Jun '24
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बारिश की संध्या मदमाती

आती प्राणों को मथ जाती

 

रिमझिम रिमझिम झरता पानी

करता संध्या की अगवानी

लौ सॅंझवाती के दीपक की

अन्तस में ज्वाला सुलगाती

 

गूॅंजती हवा में स्वर लहरी

परिवेश रचाती जो, ठहरी

भींगे फूलों की खुशबू नव

संदेश हृदय को पहुॅंचाती

 

सुनसान क्षणों का सरगम सुन

रोमावलि गाती गुनगुनगुन

परितोष नहीं मिलता, रसना

याचक बनने में सकुचाती

 

तुम बिन सूना है मन मन्दिर

निर्जन नीरव है गेह अजिर

तुम आ जाओ तो बने बात

तुम बिन संध्या न मुझे भाती

 

आने से मुकुलित होगा मन

निज तृषा बुझाएगा तब तन

परितृप्ति मिलेगी मानस को

बारिश होगी हिय हुलसाती

 

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Category:Poem



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Written by Mahesh Chandra Tripathi