विकास की कीमत

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हमारा देश निरंतर विकासपथ पर अग्रसर है. आज देश में प्रगति चारों ओर दिखाई दे रही है. साथ ही साथ लोगों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है. उनके जीवन स्तर में परिवर्तन आया है. लोगों और समाज की प्रगति होना अच्छी बात है. लेकिन कभी आपने ये सोचा है कि इस विकास की हम क्या कीमत चुका रहे हैं? यदि आप इस विचारणीय प्रश्न पर मंथन करेंगे, तो पता चलेगा कि हम इस विकास की भारी कीमत चुका रहे हैं.

आज हम भले ही आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो रहे हों, लेकिन शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, सामाजिक और नैतिक रूप से हम निरंतर दिवालिया होते जा रहे हैं. आज हम न अपने समाज को समय दे पाते हैं और न ही परिवार को. समय अभाव के कारण आज हमारी सोशल लाइफ ख़त्म सी हो गई है. आज हमारे पास न अपने परिवार के लिए समय है और न ही अपने मित्रों के लिए. फिर बाकी समाज के लिए समय की उम्मीद की जानी ही बेमानी है.

अब स्थिति ये हो गई है कि हम खुद के लिए भी समय नहीं निकाल पाते हैं. इस कारण हम शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से परेशान रहते हैं. आज हम बस पैसे कमाने की एक मशीन बनकर रह गए हैं. सुबह से लेकर रात तक हम बस पैसा कमाने के जुगाड़ में ही लगे रहते हैं. अपने परिवार और अपने नजदीकी लोगों के हालचाल जानने का समय ही नहीं है हमारे पास अब. इसीलिए जहां पहले संयुक्त परिवार बिखरे, वहां अब अधिकांश परिवारों में पति-पत्नी के बीच भी संबध संतोषजनक नहीं नजर आते हैं. एक दूसरे को समय न दे पाने के कारण अधिकांश पति-पत्नी के बीच मनमुटाव रहने लगा है.

इसके अलावा हमारे इस तथाकथित विकास की कीमत हमारे पर्यावरण को भी चुकानी पड़ रही है. हम विकास के नाम पर जंगलों को ख़त्म करते जा रहे हैं. हम विकास के चक्कर में प्रकृति से जरुरत से ज्यादा छेड़छाड़ कर रहे हैं. इसके चलते पर्यावरण असंतुलन भी बढ़ रहा है. कहीं बेमौसम बारिश-बाढ़, तो कहीं सूखा इसी का परिणाम हैं. इसके अलावा ओजोन की पर्त का कमजोर होना पृथ्वी के भविष्य के लिए घातक साबित होगा.

भूजल का गिरता स्तर भी दुनिया के लिए एक भारी समस्या बनने वाली है, क्योंकि दुनिया में जल स्तर निरंतर कम हो रहा है. साथ ही बढता प्रदूषण भी हमारी समस्याओं में और इजाफा कर रहा है. फिर चाहें वो वायु प्रदूषण हो, या जल प्रदूषण या फिर ध्वनि प्रदूषण, सभी में निरंतर बढ़ोत्तरी हुई है. इसलिए हमें वापस प्रकृति की ओर लौटना होगा.

साथ ही स्वयं अपने लिए, अपने परिवार और अपने समाज के लिए वक्त निकालना होगा. क्योंकि इनके बिना हमारा जीवन अधूरा है. यदि हमने इस दिशा में ध्यान नहीं दिया और इन समस्याओं के प्रति जागरूक नहीं हुए तो हमें भविष्य में काफी नुकसान उठाना पड़ेगा. हमारे आने वाली पीढ़ियों को हमारे इस विकास की भारी कीमत चुकानी होगी. यदि हम नहीं सुधरे तो हमें इस विकास की कीमत विनाश से चुकानी होगी. फिर पछतावे के अलावा हमारे पास कोई विकल्प नहीं होगा. 

Category:World



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Written by पुनीत शर्मा (काफिर चंदौसवी)

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writer, poet and blogger