शक्तिशाली

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22 May '24
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शक्तिशाली
जो भी शक्तिशाली हो, वह अंहकारी बनता ही हैं
अंहकार सबको उदारवाद का चेहरा दिखाता ही हैं

विरोधी हैं उसे उभरने का मौका भी नहीं दो
दबे कुचले को अदृश्य शक्ति, कर्मकाण्ड में उलझा दो

चालाकी से सबको उलझाकर सत्तासीन रहना हैं
प्रगति, बेरोजगारी, वैज्ञानिक मुद्दे भटकाना है

महिलाओं को अबला मत समझो, नव युग में समानता रहने दो
ना करो भेदभाव ऊँच – नीच का, अस्मिता, सम्मान हमेशा रहने दो

स्वंय को बहुत होशियार, शक्तिशाली और योजनाकार मानते है
इसलिए किसी की भी सूनते नहीं है, परामर्श पसंद नहीं हैं

इनके ही साथी मनगढ़ंत आचरन से सबका मनोबल तोड़ते है
उजूल – फजूल बड़े बोल बोलकर, अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारते हैं

भारतीयता के विविधता को एक कट्टरता में न बांधना हैं
भारतीयता में सभी को शासनकर्ता बनने का सभी को मौका हैं
***** 
– राजू गजभिये (सीताराम)

Category:Poem



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Written by Raju Gajbhiye

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