वर्तमान में जिस प्रकार से हवाओं में प्रदूषण घुलता जा रहा है, वह मानव जीवन के लिये जहर युक्त वातावरण का निर्माण कर रहा है। इसके चलते भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के लिये एक गम्भीर खतरा उत्पन्न हो गया है। जहां तक वातावरण की बात है तो यह सबको पता है प्राकृतिक रूप से शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करने वाले पेड़ पौधे तीव्र गति से कम होते जा रहे हैं। जिसके कारण हम जाने अनजाने प्रदूषित स्वांस ग्रहण कर रहे हैं। सवाल यह आता है कि इसके लिये दोषी कौन है। वास्तव में इसके लिये पूर्णत: हम स्वयं ही दोषी हैं, और कोई नहीं।
हमारा शरीर पंचतत्व से मिलकर बना है- जल, वायु, आकाश, मिट्टी एवं अग्नि सभी घटक अपने आप में एक विशेष महत्व रखते हैं, परंतु इन सब में एक घटक मनुष्य के लिए इतना जरूरी है कि उसके बिना वह चंद मिनिट ही जीवित रह पायेगा। वह है वायु... मनुष्य को जीवित रखने के लिये जिस वायु की आवश्यकता होती है, वह प्राणवायु कहलाती है जो हमें पेड़ पौधों से प्राप्त होती है। परंतु मनुष्य ने अपने आर्थिक लाभ के लिए प्राणवायु छोडऩे वाले पेड़ो की अंधाधुंध कटाई कर अपने जीवन को ही संकट में डाल लिया है। इसके कारण जहां धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है, वहीं मानव के लिये भी कई प्रकार की समस्याएं भी पैदा हुई हैं।
बढ़ता तापमान, वाहनों का प्रदूषण, मनुष्य के लिए खतरा बन चुका है, इस खतरे से बचने के लिए प्रत्येक मनुष्य को अपने संपूर्ण जीवन में कम से कम एक वृक्ष तो लगाना ही चाहिए ताकि उसकी भावी पीढ़ी को शुद्ध प्राणवायु मिल सके। आजकल कई लोग सोशल साइट पर पौधारोपण करते हुए मिल जायेंगे, उनका उद्देश्य फोटो में पौधारोपण करना होता है परंतु वास्तविकता में वृक्षारोपण वही माना जाएगा जो एक पौधे को रोपने के बाद उसे अपने बच्चे की भांति पाल-पोस कर एक वृक्ष का स्वरूप दे सके।
हम जानते हैं कि आजकल भाग सब रहे हैं, लेकिन यह पता नहीं कि हम किधर जा रहे हैं। हमें यह विचार अवश्य ही करना चाहिये कि कहीं यह यह भाग दौड़ हमारे विनाश का मार्ग तो तैयार नहीं कर रही। इसलिए यह आवश्यक है कि हम चिंतन करें, विचार करें कि हमारी भूमिका क्या होना चाहिये, क्योंकि जो भाग दौड़ हमारे लिये सार्थक दिशा और दशा का निर्माण करने में असमर्थ हो, ऐसी भाग दौड़ से कोई लाभ नहीं। हम यह भी जानते हैं कि व्यक्ति के जीवन का सम्पूर्ण लक्ष्य केवल अपने लिये मात्र नहीं होता। व्यक्ति के दिन भर के जीवन को तीन भागों में विभक्त किया गया है, जिसमें आठ घन्टे अपने लिये, आठ घन्टे परिवार के लिये और आठ घन्टे समाज के लिये देने का विधान है, लेकिन हम इसके अनुसार जीवन यापन कर रहे हैं क्या? अगर नहीं कर रहे तो विचार करना चाहिये। जहां तक व्यक्ति के इस समय निर्धारण की बात है तो वह अपने लिये और परिवार के लिये तो पूरा समय दे रहा है, लेकिन समाज के लिये उसके पास समय नहीं है। अगर वह समाज के बीच जाकर सामाजिक समस्याओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करेगा तो उसे ध्यान आएगा कि कुछ समस्याएं सहकार भाव के अभाव के चलते ही निर्मित हुई हैं। जिसमें एक बड़ी समस्या बिगड़ता वातावरण भी है। यह किसी एक की समस्या नहीं है और न ही कोई एक व्यक्ति इसका समाधान निकाल सकता है, इसके लिये सामूहिक जिम्मेदारी के भाव के साथ पहल करने की आवश्यकता है। हम समूह रूप से अगर धरती पर पेड़ लगाएँगे तो यह समस्या दूर होगी ही, तय है। अभी ज्यादा देर नहीं हुई, लेकिन समय निकलेगा तो देर भी हो सकती है।
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