लटकन और ननकू की दौड

कहानी- लटकन और ननकू की दौड

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03 Jul '24
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कहानी- लटकन और

ननकू की दौड

लटकन कछुआ बहुत उदास बैठा था। ननकू

खरगोश के कारण आज फिर उसका मूड खराब हो गया।

'

"बड़े फुर्तीले बनते हो ना... अरे । एक

बार तो तुम्हारे दादा ने मेरे दादा को और न

दूसरी बार तुम्हारे पिताजी ने मेरे पिताजी

को दौड़ में हरा दिया था लेकिन अब और

नहीं... अब हारने की बारी तुम्हारी है...'

दोस्तों के सामने उसे चुनौती देकर गया था।

"

ननकू सब

"इसमें घबराने की क्या बात है...उसे मैदान में

आने तो दो...जैसे हमारे पुरखों ने जुगत लगाईं थी उसी

तरह हम भी कोई न कोई उपाय जरूर निकाल लेंगे...'

उसके बड़े भाई मटकन ने उसे हिम्मत बंधाई।

"

और फिर एक दिन.... "है हिम्मत तो आओ, मुझसे

मुकाबला करो।” ननू ने

उसे सबके सामने

ललकारा।"

"मुझे तुमसे कोई मुकाबला नहीं करना, मैं तो

तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ।” लटकन ने विनम्रता से

कहा।”

"बाप-दादाओं के जमाने से चली आ रही

प्रतियोगिता इतनी सरलता से समाप्त नहीं हो

सकती...या तो हार मान लो या फिर चुनौती के लिए

तैयार हो जाओ।" ननकू गुस्से में बोला।"

"इसे तुम्हारी चुनौती स्वीकार है...बोलो। दौड़

कब और कहाँ होगी?" मटकन बीच में बोला।

"इस बार दौड़ नहीं होगी... उसमें तो तुम लोग छल

करते हो...इस बार भार उठाने की प्रतियोगिता

होगी...बोलो स्वीकार है या

हार मानते हो?" ननकू

ने इस बार चुनौती

बदल दी।

"हमें स्वीकार है...लेकिन हमारा भी एक प्रस्ताव

है..." मटकन ने कहा।

“बोलो”

"ये दौड़ नदी के किनारे होगी... जितनी दूरी तुम

धरती पर चलोगे, उतनी दूरी लटकन नदी में तैर कर पार

करेगा.."मटकन ने अपनी बात रखी।

"मुझे कोई आपत्ती नहीं।" ननकू ने खुश होते हुए

कहा क्योंकि उसे अपनी चाल पर बहुत घमंड था।

अगले रविवार को दौड़ होनी तय हुई। मिल्लू

लोमड़ को निर्णायक बनाकर दौड़ शुरु होने वाले बिन्दु

पर और कल्लू कौए को दौड़ समाप्त होने वाले स्थान

पर तैनात करना तय किया गया। जंगल के सभी जानवरों

को दौड़ देखने और उत्साहवर्धन करने के लिए

आमंत्रित किया गया।

रविवार के दिन सुबह से ही नदी के किनारे इस

अनोखी प्रतियोगिता को देखने वाले जानवरों की भीड़

जुट गई। दोनों निर्णायक अपनी-अपनी जगह पर कुर्सी

लगाकर बैठ गए। राजा मोहरसिंह को अंतिम निर्णय देने

के लिए बुलाया गया।

दो-दो किलो का भार ननकू और लटकन की पीठ

पर बाँध दिया गया। ननकू की सुकोमल सी पीठ बोझ के

कारण थोड़ा नीचे हो झुक आई लेकिन लटकन की

नहीं। वह ननकली का भार ननकू और लटकन की पीठ

पर बाँध दिया गया। ननकू की सुकोमल सी पीठ बोझ के

कारण थोड़ा नीचे हो झुक आई लेकिन लटकन की

कठोर पीठ पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह ननकू

की ओर देख कर मुस्कुराया और उसे अंगूठे के संकेत से

"आल द बेस्ट" कहा…

दोनों ने दौड़ शुरु करने के लिए स्थिति ले ली।

ननकू जमीन पर खड़ा था वहीं लटकन उसी के बराबर में

नदी में खड़ा था। मोहरसिंह से सीटी बजाकर दौड़

आरंभ करने का संकेत किया और दोनों प्रतियोगी चल

पड़े।

कुछ ही दूर चलने पर ननकू बोझ से हाँफने लगा।

उसकी पूरी देह पसीने से भीग गई। उसकी चाल धीमीहोने लगी वहीं लटकन बड़ी सहजता व आनंद से लक्ष्य

की ओर बढ़ा चला जा रहा था। ननकू मार्ग में ही थक गया

और लटकन एक बार फिर से दौड़ में विजयी आया।

"अपने दादा और पिता की भांति लटकन भी

खरगोश और कछुए की दौड़ में विजेता घोषित किया

जाता है। मोहरसिंह ने घोषणा कि तो लटकन और

मटकन खुशी से झूम उठे।

"

“भैया! ये क्या चमत्कार था....मुझे विश्वास ही

नहीं हो रहा कि मैं ये दौड़ जीत गया हूँ। आपने इतने

विश्वास के साथ कैसे ये चुनौती स्वीकार कर ली थी?”

लटकन ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

"ये विज्ञान का चमत्कार है मेरे भाई! एक बहुत

बड़े वैज्ञानिक आर्कमिडिज ने अपने सिद्धांतों में बताया है

कि किसी वस्तु को किसी द्रव में थोड़ा या पूरा डुबा दिया

जाये तो उसके भार में कमी हो जाती है... यह कमी उस

वस्तु द्वारा हटाये गए द्रव के भार के बराबर होती है... बस !

हमने भी यही सिद्धांत अपनाया.... और देखो! पानी में

तुम्हारा बोझा बिल्कुल कम हो गया और तुम ननकू से

आगे निकल गए...!" लटकन ने समझाया।

"सच भैया! ये तो सचमुच ही विज्ञान का चमत्कार

"आगे निकल गए..." लटकन ने समझा

"सच भैया! ये तो सचमुच ही विज्ञान का चमत्कार

है।" लटकन की आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह

गई।

विज्ञान तो सचमुच बहुत चमत्कारी है. मटकन!

हम आज ही तुम्हें जंगल का विज्ञान शिक्षक बनाते हैं।

सब के साथ-साथ मैं भी विज्ञान पढ़ना चाहता हूँ ताकि

हम सब साथ उन्नति कर सकें।" मोहरसिंह ने कहा। वह

पीछे खड़ा उनकी बातें सुन रहा था।

"जी महाराजा" मटकन ने मोहरसिंह को

धन्यवाद दिया और दोनों भाई अपने घर की तरफ चल

दिए।

ननकू अभी तक अपने हारने का कारण नहीं समझ

पाया था।

Category:Stories



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Written by Ravindra patidar

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