गंभीर नेताओं के अभाव से जूझते दल

समाज औऱ राष्ट्र को पीछे धकेलते दलों के मुखिया

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15 Jun '24
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देश में सरकार का गठन हो चुका है चुनाव प्रचार अभियान में राष्ट्रीय दलों औऱ क्षेत्रीय दलों ने जिस तरह की भाषा का उपयोग, बॉडी लैंग्वेज का उपयोग औऱ जिन शब्दों का इस्तेमाल किया,इसका अर्थ आसानी से समझा जा सकता है. और इससे यही पता चलता है कि देश वर्तमान में गंभीर नेताओं के संकट से गुजर रहा है 

देश क  गंभीर मुद्दे समग्र विकास, स्वच्छ राजनीति, ईमानदार मतदाता, प्रगतिशील समाज, सुरक्षित सीमाएं, विवेकशील जनता औऱ निष्पक्ष प्रशासन जैसे मुद्दे गायब रहे. इनके स्थान पर बहुसंख्यकवाद, मुस्लिम, बेरोजगारी, इलेक्ट्रॉल बांड, पीड़ीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक), संविधान बचाओ, आरक्षण, शक्ति, मंगलसूत्र, इंहेरिटेन्स लॉ, सांप्रदायिकता हिन्दू, गारंटी कार्ड, मंहगाई, बेरोजगारी भत्ता, 8500 प्रति महीना, बुलडोज़र, मुस्लिम उत्पीड़न सवर्ण हिन्दू उन्मूलन जैसे मुद्दे रहे. जो वैर, नफरत ए भरे हुए थे 

ऐसे मुद्दे से नेताओं के विवेक, स्वभाव और चरित्र को समझा जा सकता है, ऐसे नेता राष्ट्रवाद, लोक कल्याण, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र सम्मान से कोई सम्बन्ध नहीं है. ऐसे नेताओं का सम्बन्ध किसी ही तरह से अपनी सत्ता को जीवित रखना है. जिससे समाज में परिवार की प्रतिष्ठा बरकरार रह सके औऱ उनका सामजिक जीवन सुरक्षित रह सके साथ ही राजनीति में परिवारवाद को पीढ़ियों को सौपकर परिवार को मजबूत कर सके l इसके लिए समाज को सम्प्रदाय, जाति औऱ गौत्र में ही बाँट दिया जाएl




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Written by Neelabh Baghel