पारस्परिक प्रयत्नों से ही प्रेम चढ़ा करता परवान

गीत

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21 Nov '24
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पारस्परिक प्रयत्नों से ही, प्रेम चढ़ा करता परवान।

कोशिश कशिश एकतरफा तो, बनती उन्नति में व्यवधान।।

 

मजा प्रेम में तब ही है जब, आग लगी हो दोनों ओर।

दोनों के अंतस-अम्बुधि में, संग संग ही उठे हिलोर।।

एक दूसरे की रुचियों का, दोनों रखें बराबर ध्यान।

कोशिश कशिश एकतरफा तो, बनती उन्नति में व्यवधान।।

 

संग संग भीगें बारिश में, संग पुलिन पर करें प्रवास।

दूर दूर यदि रहें सवेरे, शाम बनाएं अपनी खास।।

मना न करें कभी मिलने से, करें न खुद पर कभी गुमान।

कोशिश कशिश एकतरफा तो, बनती उन्नति में व्यवधान।।

 

खाएं कभी साथ में भुट्टा, कभी साथ में खाएं चाट।

साथ साथ जब झूला झूलें, बंद न दिल के रखें कपाट।।

जब- तब खाएं और खिलाएं, प्रिय को प्रेमपूर्वक पान।

कोशिश कशिश एकतरफा तो, बनती उन्नति में व्यवधान।।

 

भ्रम-भूलों के बीच न भटकें, लेते रहें प्रेम का स्वाद।

घटने न दें चाह को अपनी, दें रिश्ते को पानी खाद।।

कवि की कविता के क्रेता बन, गाते रहें प्रणय के गान।

कोशिश कशिश एकतरफा तो, बनती उन्नति में व्यवधान।।

 

इटली फ्रांस नहीं जा सकते, अगर आप दौलत से दीन।

ताजमहल अब पड़ा पुराना, और हुआ आकर्षणहीन।।

वृंदावन में कुंज नहीं अब, गोवा को करिए प्रस्थान।

कोशिश कशिश एकतरफा तो, बनती उन्नति में व्यवधान।।

 

@ महेश चन्द्र त्रिपाठी 

Category:Poem



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Written by Mahesh Chandra Tripathi

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