हमारे मेले

प्यार, व्यापर और आंनद

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16 Jun '24
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बात करके फोन रखा और खुशी से सोफे पर चिंटू,चिंकी उछलने लगें। दरअसल दोनों बच्चे लंबे समय अंतराल के बाद अपने दादाजी के घर गाँव जा रहें थे इसलिए फूले नहीं समां रहे थे। नौकरी के कारण चिंटू, चिंकी के माता-पिता शहर रहतें थे। खेती को संभालने के लिए इनके दादाजी रमन सिंह जी गाँव में ही रहतें है। दोनों बच्चों का लगाव गाँव की धरती से बिल्कुल अपने दादाजी के समान जुड़ा हुआ है। लोग सुबह जल्दी उठते हैं, पक्षियों की चहचहाहट सुनते हैं, और खेतों में किसान अपने काम के लिए तैयार होते हैं। गाँव की मिट्टी की सुंगध चिंटू और चिंकी दोनों को हमेशा खींचती है। चिंटू शहर के मशहूर स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ता है और उसकी बहन तीसरी कक्षा में पढ़ती है। दोनों बच्चे पढ़ाई में हमेशा आगें रहतें है लेकिन शरारत में और भी आगें रहतें है। अगले दिन चिंटू और चिंकी दोनों अपने पिताजी के साथ गांव में दादाजी के घर पहुँचे। दोनों बच्चों को जैसे ही दादाजी ने देखा, खुशी से अपनी बाँहों में भर लिया। वाकई मिलन का ये दृश्य रमणीय था। दादाजी नें मिट्टी के घड़े से बच्चों के लिए पानी निकाला। दोनों बच्चों ने पानी पिया और दादाजी के साथ वार्तालाप शुरू कर दिया। बातों ही बातों में दादाजी के कहाँ "बच्चे गाँव में कल मेला, मेले में जाएंगे और आनंद लेंगे। चिंटू ने पूछा "दादाजी ये मेला क्या होंता है?चिंकी ने कहाँ "चिंटू माॅल जिसमें में अक्सर हम पिताजी के साथ जातें है, दादाजी उसी माॅल की बात कर रहें है।" दादाजी नें बीच में चिंकी को रोका और कहाँ "बेटा माॅल का तात्पर्य अलग होंता है और मेला अलग होंता हैं। उन्होंने कहाँ कि बेटा मेला एक बड़ा और रंगीन समाजिक आयोजन होता है जो विभिन्न प्रकार के वस्त्र, खिलौने, खाने-पीने के स्थान, और मनोरंजन के विकल्प प्रदान करता है। मेले में लोग परिवार के साथ मिलने, खरीदारी करने, और मनोरंजन करने आते हैं। चिंटू और चिंकी दोनों ने एक स्वर में कहाँ "दादाजी माॅल में भी तों यही सब कुछ होंता है।" दादाजी नें कहाँ कि माॅल का उद्देश्य व्यापार में अंधाधुंध मुनाफा कमाना होंता है। माॅल का दरवाजा सिर्फ उन लोगों के लिए खुलता है जिनके पास अधिक पैसा हो जबकि मेला एक सामाजिक आयोजन होता है, मेले में सभी का समान भाव से सत्कार किया जाता है। यहां अमीर-गरीबी को नहीं आंका जाता है। चिंटू ने कहाँ "दादाजी मेले कितने प्रकार के होंते है।" दादाजी ने कहाँ मेले विभिन्न प्रकार के होंते है जैसे धार्मिक, सांस्कृतिक आदि। धार्मिक मेले किसी विशेष अवसर पर आयोजित होंते है जैसे कुंभ मेला, रथ यात्रा मेला, और दीपावली मेला। सांस्कृतिक मेले संस्कृति, भाषा, और विविधता को उजागर करते हैं, जैसे कि लोहड़ी मेला, नागौर मेला, और पुष्कर मेला। इसके अलावा पशु मेले भी होंते है।
 

                  अगले दिन दादाजी चिंटू और चिंकी दोनों को लेकर मेले में जातें है। भीड़ को देख दादाजी बोलते है बच्चों एक दूसरे का हाथ मत छोड़ना। चिंटू और चिंकी दोनों हामी भरते है। चिंटू कहता है "दादाजी तेज भूख लगी है, कुछ खातें है।" दादाजी बोले बिल्कुल बच्चों चलिए गुड़ पपड़ी खातें है। चिंकी पूछती है दादाजी ये गुड़ पपड़ी क्या होंती है। दादाजी जबाब देते है कि ये एक स्पेशल मिठाई है जो गुड़ और आटे से तैयार होंती है। दादाजी बच्चों को रघु काका की दुकान पर लेकर जातें है, रघु काका और दादाजी की दोस्ती काफी गहरी और पुरानी है। जैसे ही दुकान पर पहुंचते हैं रघु काका खुशी से उनकों चारपाई पर बैठाते है और शीघ्र उनके समक्ष खाने के लिए गुड़ पपड़ी रखतें है। बच्चे मिठाई खाने में मशगूल हो जातें है, दादाजी रघुकाका से वार्तालाप करतें है। बातों ही बातों में रघु काका के चेहरे पर परेशान का भाव नजर आता है। दादाजी के पूछने पर रघु काका अपनी दुख भरी दास्ताँ बयां करतें है। वो कहतें है "कौन इस जमाने में गुड़ की पपड़ी को पसंद करता है। एक जमाना था जब मेरी गुड की पपड़ी के लिए लंबी कतार लगी होती थी। अब तो इक्का-दुक्का ग्राहक आते हैं। वह भी सामान तुलवाकर एक कार्ड पकड़ा देते हैं। कहते हैं यह लो हमारा डेबिट कार्ड पेमेंट कर लो और हम अनपढ़ लोगों को कहा, यह ऑनलाइन पेमेंट की विधि समझ आती है, इसलिए ग्राहक को मना कर देते हैं। हमें तों सिर्फ वस्तु विनिमय प्रणाली रास आती है।" दादाजी रघु काका को धीरज बंधाकर बच्चों को मेले दिखाने के लिए उस दुकान से चल पड़ते है। घर आनें पर चिंटू दादाजी से पूछता है "दादाजी ये वस्तु विनिमय प्रणाली क्या होंती है।" दादाजी आसान शब्दों में बच्चों को समझाते है कि हमें यदि किसी वस्तु की जरूरत है तों सामने वाले व्यक्ति को कोई अन्य वस्तु प्रदान करके हम उससे वह वस्तु ग्रहण कर लेतें है।" दादाजी सोचते है कि बताओ जिंदगी क्या हो गई है, इन बच्चों को वस्तु विनिमय, मेला, गुड़ पपड़ी आदि के बारें में कुछ नहीं पता है जबकि ये हमारे संस्कृति के आधार है। ये तों सिर्फ माॅल,थियेटर, पाप कॉर्न आदि के गुण गाते हैं।

Category:Literature



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Written by trtr

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