ऐ स्त्री तू
स्त्री- पुरुष की समनता की गणित में मत उलझ,
अपने स्त्री तत्व की गरिमा को संजोए रख,
स्त्री - पुरुष के तत्वों में समानता संभव नहीं,
वो तो पूरक हैं एक दूसरे के ,
एक का अस्तित्व दूसरे के बिना अपूर्ण है।
स्त्री तू प्रकृति है,
प्रेम और शालीनता की परिचायक है,
तू नए जीव की जननी है ,
तू अपने स्त्री तत्व को और निखार,
प्रेम , शालीनता , करुणा और ममत्व गुणों को संरक्षित कर,
ईश्वर की देन का मान रख।
स्त्री तू प्रथम गुरु है ,
नयी पीढ़ी में स्त्री पुरुष का सम्मान करना सीखा,
उनमें प्रेम ,दया ,करुणा और शालीनता का एहसास भर,
नैतिक मूल्य और कर्तव्य ही अच्छे चरित्र की पहचान हैं,
इन बातों का उनमें ज्ञान भर,
ईश्वर द्वारा रचित श्रृष्टि का आभार कर।
ऐ स्त्री तू ,
स्त्री पुरुष की समानता की बीज गणित में मत उलझ,
तू बस सामान्य अंक गणित का ज्ञान रख,
रिश्तों में लेन देन का साधारण सा हिसाब रख,
मत उलझा खुद को प्रतियोगिता में जीतने को,
तू तो स्वयं सद्बुद्धि, शक्ति और समृद्धि का स्वरूप है।
तू तो स्वयं सद्बुद्धि, शक्ति और समृद्धि का स्वरूप है।।
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