रात का सफ़र

यात्रा

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11 Jun '24
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रात का सफर था

ट्रेन पूरे रफ़्तार से चली जा रही थी

वो दोनों दोस्त थे और अपर बर्थ पर साथ बैठे बातें कर रहे थे

लड़की ने बाल ठीक करने के लिए अपना रबर बैंड खोला

लड़का उसे एक टक देख रहा था

तो लड़की ने बाल खुले छोड़ दिए

सीट के पीछे एक कील थोड़ी सी निकली हुई थी

अब लड़की के बाल बार बार उसमें फसने लगे

तो लड़के ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख लिया

रात गहरी होती जा रही थी

लड़की अभी भी बातें किये जा रही थी

बातें भी गहरी होतीं जा रहीं थीं

लड़का अभी भी उसे देख रहा था

कुछ देर बाद लड़के ने अपना हाथ आगे बढ़ाया

लड़की ने अपना हाथ उसके हाथों पर रख दिया

लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया

अब भोर हो चली थी

लड़के ने लड़की से पूछा 'तुम्हें नींद नहीं आ रही है?'

लड़की ने जवाब दिया 'अब आ रही है!'

और लड़की लड़के के हाथ पकड़, 

उसके कंधे पर सर टिका के सो गयी

लड़का कुछ देर उसे देखता रहा

फिर उसने उसके चेहरे से बाल हटा कर 

उसका माथा चूम लिया

अब वो दोस्त नहीं थे

ट्रेन अभी भी चली जा रही थी।

Category:Travel



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Written by vishvash gaur

हम हमेशा पृथ्वी के दो ध्रुवों की तरह रहे एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत जो कभी मिल नही सकते पर उनका होना जरूरी है संतुलन के लिए कभी मांगा ही नही एक दूसरे को एक दूसरे से ना ही ईश्वर से अब वो ही जाने उसने क्यों हमें एक दूसरे के इतना समांतर रख दिया जो साथ चल तो सकते हैं पर हाथ थाम कर नहीं

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