रात का सफर था
ट्रेन पूरे रफ़्तार से चली जा रही थी
वो दोनों दोस्त थे और अपर बर्थ पर साथ बैठे बातें कर रहे थे
लड़की ने बाल ठीक करने के लिए अपना रबर बैंड खोला
लड़का उसे एक टक देख रहा था
तो लड़की ने बाल खुले छोड़ दिए
सीट के पीछे एक कील थोड़ी सी निकली हुई थी
अब लड़की के बाल बार बार उसमें फसने लगे
तो लड़के ने पीछे से उसके कंधे पर हाथ रख लिया
रात गहरी होती जा रही थी
लड़की अभी भी बातें किये जा रही थी
बातें भी गहरी होतीं जा रहीं थीं
लड़का अभी भी उसे देख रहा था
कुछ देर बाद लड़के ने अपना हाथ आगे बढ़ाया
लड़की ने अपना हाथ उसके हाथों पर रख दिया
लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया
अब भोर हो चली थी
लड़के ने लड़की से पूछा 'तुम्हें नींद नहीं आ रही है?'
लड़की ने जवाब दिया 'अब आ रही है!'
और लड़की लड़के के हाथ पकड़,
उसके कंधे पर सर टिका के सो गयी
लड़का कुछ देर उसे देखता रहा
फिर उसने उसके चेहरे से बाल हटा कर
उसका माथा चूम लिया
अब वो दोस्त नहीं थे
ट्रेन अभी भी चली जा रही थी।
हम हमेशा पृथ्वी के दो ध्रुवों की तरह रहे एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत जो कभी मिल नही सकते पर उनका होना जरूरी है संतुलन के लिए कभी मांगा ही नही एक दूसरे को एक दूसरे से ना ही ईश्वर से अब वो ही जाने उसने क्यों हमें एक दूसरे के इतना समांतर रख दिया जो साथ चल तो सकते हैं पर हाथ थाम कर नहीं
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