कभी न जियो अधूरा जीवन
कभी न आधी मौत मरो
कभी न बनो अधूरे प्रेमी
कभी न अर्द्ध मित्रता करो
जब गहो मौन, तब रहो मौन
जब बोलो, बोलते रहो
काम न करो अधूरे मन से
आधी बात न कभी कहो
वाणी है वरदान ईश का
मौन न रहो जरूरत पर
सत्य हमेशा ही स्वीकारो
परे हटाकर सारे डर
बचो अनिर्णय की दुस्थिति से
दुर्बलता का त्याग करो
अर्द्ध सत्य को मत स्वीकारो
उर में उन्नत भाव भरो
कभी न सम्भव न्याय अधूरा
आधा सत्य नहीं होता
अर्द्ध स्वप्नदर्शी सदैव ही
त्रासद स्वप्न भार ढोता
आधा खाकर पेट न भरता
आधा पीकर तृप्ति नहीं
आधी दूर चले राही तो
मंजिल मिलती उसे कहीं
मत कल्पना करो आधे की
आधा है परिणाम रहित
दो आधे मिल एक न होते
एक वही जो लक्ष्य सहित
एक समय में एक काम को
पूर्णाहुति तक ले जाओ
जीवन जियो पूर्णतावादी
अपनी हर मंजिल पाओ
बात भूल आधे जीवन की
आधा कभी न मुसकाओ
आधा प्रेम न करो किसी से
प्रेमी को पूरा पाओ
आधा मीत बनाना छोड़ो
असमंजस में बिना पड़े
चलकर ही मंजिल पाओगे
नहीं मिलेगी खड़े- खड़े
बोध जगाओ पूरेपन का
पूरे मीत बनाओ तुम
अविश्वास मत करो किसी पर
सबमें प्रभु को पाओ तुम
कोई नहीं अजनबी जग में
जैसे हम हैं सब वैसे
पूर्ण ब्रह्म की पूर्ण सृष्टि में
लोग सभी अपने जैसे
बोध अधूरेपन का ही है
प्रगतिशीलता में बाधक
पूरेपन का बोध जगाकर
बनें सिद्धि के हम साधक
©®- महेश चन्द्र त्रिपाठी
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