ना मेै फौजी , ना मै सिपाही
फिर भी मुझे देश की रक्षा करनी है
अपनी कलम और अपने शब्दों से
अपने देश की बात रखनी है
खबर कोई आ जाए दुश्मन की
मेरी भृकुटी तन जाती है
कदम कोई रख दे
मेरे देश की धरती पर
मेरी छाती छलनी हो जाती है
ना मेै फोजी ना मेै सिपाही
फिर भी मुझे देश की रक्षा करनी है
दुश्मन की खबर सुनकर
मेैं लि खता हूं शब्दों को चुनकर
ताकि वक्त जरूरत
शब्द मेरे बारुद बन जाए
दुश्मन पर ज्वालामुखी की तरह
परितोश की कलम से
निकलकर फट जाए
ना मै फौजी ,ना मै सिपाही
फिर भी मुझे देश की रक्षा करनी है
अपनी कलम के शब्दों से
अपने देश की बात रखनी है ।
कविराज परितोष अरोरा “कौन”
फिरोजाबाद
कवि,पत्रकार
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