सहस्रानन रावण:
“दशरथनंदन राजा राम की जय हो!”
जय हो..जय हो!!
महल के बाहर एकत्र जन समुदाय हर्ष के साथ जय जयकार कर रहा था,और करता भी क्यों न…आखिर अपने चौदह वर्ष के वनवास को पूर्ण करके और लंकापति रावण का वध करके आज उनके श्री राम अयोध्या के राजा जो बनने जा रहे थे।
राज्याभिषेक के लिए भव्य तरीके से राज महल को सजाया गया था, और सीता जी के साथ साथ लक्ष्मण, भरत,शत्रुघ्न,हनुमान,विभीषण आदि दरबार में अपने चेहरों पर खुशियों की चमक लिए बैठे थे।
पुरोहित ने राज्याभिषेक के लिए मंत्रोच्चार आरंभ किया और उसके बाद उसने कहना शुरू किया,
“दरबार में आसीन समस्त अतिथियों और प्रजाजन का मैं आभार प्रकट करता हूं,आज अयोध्या के भाग्य फिर से जाग उठे हैं जो हमारी इस चौदह वर्षों से अनाथ रही प्रजा को नाथ मिलने जा रहा है, और खुशियां वापस आने वाली है। हमको पूर्ण विश्वास है,जिन श्री राम ने लंकाधिपति रावण का वध करके इस भूमंडल को असुरों के आतंक से मुक्त कराया है,वे सर्वदा हमारा कल्याण करेंगे।” और इसके बाद श्री राम के सिर पर मुकुट रख कर एक तरफ हो गया।
लेकिन श्री राम जी के समीप ही आसन पर बैठी माता सीता के मुख पर पुरोहित की बात सुनकर एक मुस्कान तैरने लगी थी,और इस मुस्कान को देखकर हनुमान,लक्ष्मण जी के साथ ही साथ श्रीराम जी के हृदय में प्रश्न उमड़ने लगा, कि आखिर सीता जी क्यों मुस्कुरा रही हैं।
“माते..अपराध क्षमा करें किंतु मैं आपसे पूछना चाहता हूं, कि आप पुरोहित की बात पर क्यों मुस्कुरा दी है?”अपने हाथों को जोड़े हुए हनुमान ने सीता से प्रश्न कर दिया, और सभी की दृष्टि प्रतिउत्तर के लिए सीता के मुख की ओर ही देख रही थी।
“कुछ नही वत्स हनुमान…बस यूं ही।”सीता ने कहा।
“नही यूं ही नहीं माते..अवश्य ही कोई रहस्य है और आपको मुझे बताना होगा।”हनुमान ने हठ करते हुए सीता के चरणों के पास आकर बैठते हुए कहा।
सीता जी ने हनुमान के सिर पर हाथ फिराते हुए कहा,
“अच्छा अगर तुम हठ कर रहे हो तो मैं बताती हूं, कि मुझे हंसी क्यों आ गई? बचपन मे जब अपने पिता जनक के यहां थी तब एक ब्राह्मण ने कहानी सुनाई थी, कैकसी और विश्रवा के दो पुत्र थे, पहला पुत्र सहस्रानन रावण और दूसरा पुत्र दशानन रावण….दशानन रावण ने देवों से वरदान पाकर तीनों लोक जीतकर लंका में अपना निवास बनाकर अपने अधर्म और अत्याचारों को बनाए रखा जबकि सहस्रानन रावण अपने नाना सुमाली के साथ पुष्कर द्वीप में जाकर निवास करने लगा और वहीं अपना शासन अब भी चला रहा है..!”
सीता जी के इन शब्दों को सुनकर पूरे दरबार में एक शांति सी छा चुकी थी,लेकिन अपनी बात को आगे जारी रखते हुए उन्होंने कुछ पलों में फिर से बोलना शुरू किया,
“अभी जब पुरोहित ने अयोध्या वासियों से ये कहा की प्रभु ने दशानन का वध करके भूमण्डल से पाप को मिटा दिया है…असुरों का नाश कर दिया है,तभी इसको सुनकर मुझे हंसी आ गई थी, कि जब तक सहस्रानन रावण जीवित है,तब तक ये कैसे संभव हो सकता है कि ये भूमंडल असुरविहीन हो गया।”
सीता जी के मुख से निकले इन शब्दों को सुनकर श्री राम और लक्ष्मण सहित दरबार में बैठे सभी लोग चौंक से उठे..और अब सभी की आंखों में एक प्रश्न के साथ सभी श्री राम की ओर देख रहे थे…उनकी प्रतिक्रिया की आस के साथ।
“भ्राता श्री..अगर माते ने सहस्रानन रावण के बारे में बताया है, तो इस असुर के वध के लिए आप मुझे आज्ञा दें ,मैं अभी सेना लेकर जाता हूं और इस का भी वध करके आता हूं।” लक्ष्मण ने खड़े होकर अपने चेहरे पर आ गई क्रोध की मुद्रा के साथ कहा,तभी पीछे से भरत और शत्रुघ्न भी उठते हुए बोले “ नहीं .. नहीं….लक्ष्मण भैया अकेले नहीं जाएंगे हम लोग भी साथ जायेंगे!”
तब तक पीछे से हनुमान , विभीषण और नील आदि भी बोल पड़े..,
“प्रभु हम भी तो आपके सेवक ही हैं,अतः इस असुर से युद्ध करने हेतु हमको भी जाने की आज्ञा दें!”
श्रीराम जी अभी तक बैठे शांत मुद्रा में सभी लोगों की प्रतिक्रियाओं को देख रहे थे,और उनकी बातों को सुन रहे थे, एकाएक धीर गंभीर स्वर में बोले…,
“आप सभी का ये प्रेम ये त्याग और समर्पण ही मेरे लिए बहुत है,.....और मैं आप सभी के दशानन रावण से लड़े गए युद्ध के लिए किए गए संघर्षों और साथ को हमेशा याद रखूंगा…किंतु इस सहस्रानन रावण से युद्ध करने के लिए मैं किसी को अनुमति नहीं दूंगा…इसके लिए मैं स्वयं ही पुष्कर द्वीप जाऊंगा!”
“लेकिन प्रभु क्षमापूर्वक हम लोग आपसे कहते हैं.. कि युद्ध में हम सभी लोग भी साथ ही चलेंगे आपके…..आपको अकेले नहीं जाने देंगे।” सभी ने समवेत स्वर में विनीत भाव से कहा।
एक बार श्री राम ने उन लोगों की तरफ देखा और फिर ज्यों ही पलटकर सीता की ओर देखा,तभी सीता जी ने कहा,
“स्वामी दशानन से युद्ध करके मुझे सुरक्षित वापस लाने के लिए आपने समुद्र लांघ कर और कठिन संघर्ष करके मेरे बगैर युद्ध किया……लेकिन इस बार मैं भी आपकी अर्धांगिनी होने के कारण आपके साथ चलूंगी…और इन सभी लोगों को भी ये अवसर आपको देना ही चाहिए क्योंकि लंका विजय में भी ये लोग तो आपके साथ ही रहे थे।”
सीता की बात पूर्ण होते ही दरबार में बैठे पुरोहितों ने समर्थन देते हुए कहा,
“हां श्री राम, सीता जी कह तो सही रही हैं,अतः आपके लिए ये उचित होगा कि आप उचित निर्णय लेते हुए सभी को ये अवसर प्रदान करें!”
“हां पुरोहित जी मैं इन सभी का विश्वास नहीं तोडूंगा और सभी को इस युद्ध में चलने के लिए आदेशित करता हूं, मेरे सभी भाई और वानर सेना प्रमुख अपनी अपनी सेना तैयार करें और सीता को भी युद्ध में हमारे साथ भाग लेने की अनुमति है,....कल सुबह ही पुष्पक विमान से सभी सेनाएं पुष्कर द्वीप की तरफ प्रस्थान करेंगी सहस्त्रानन रावण से युद्ध करने के लिए।”
और अगले ही क्षण दरबार में जय जयकार की ध्वनि के साथ सभी लोग बाहर की ओर चल दिए अपनी सेना को तैयार करने के लिए, अगले दिन के युद्ध के प्रस्थान के लिए।
**********************************
महल की चहारदीवारी पर बने प्रस्तर कोठों में अपने अपने हाथों में अस्त्र शस्त्र लिए और इसी तरह फाटक पर भी पहरा दे रहे भयानक कदकाया के असुर पुष्कर द्वीप के इस महल की सुरक्षा में तैनात खड़े थे,जिसके भीतर सहस्त्रानन रावण का निवास है,एकाएक एक असुर ने चिल्लाते हुए,और संकेत में अपनी एक उंगली उठाते हुए कहा,..
“सेनापति जी….उधर देखिए.. उस सुदूर गगन क्षेत्र मे कोई विमान तेजी से इस ओर ही आता प्रतीत हो रहा है!”
एक भीमकाय असुर ने देखा और तुरंत ही बोला,
“जाओ महाराज को तुरंत संदेश भेजो, कि कोई शत्रु हम पर हमले के लिए आ रहा है,....और सभी प्रहरी सावधान हो जाएं।”
“जी सेनापति अभी संदेशा लेकर जाता हूं।”कहते हुए एक असुर तेजी से महल की ओर चल दिया।
अद्यतन जारी…
0 Followers
0 Following