मेरी माँ

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28 Jun '24
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मेरी रूह मे मेरी माँ बसती है.  मेरे ही चेहरे मे मुस्कुराती है वो मेरे ही होठों से हंसती he. . मेरी सीरत मे झलकती है उसकी सीरत.  मेरे संस्कारों मे उसकी रूह झलकती है. मुझमे मेरी माँ बसती है. कभी मेरे अंदाज उसके जैसे होते है तौ कभी मेरे स्वर मे उसकी आवाज निकलती है. मुझमे मेरी मां बसती है. कभी मेरी आदते उसके जैसी लगती है तो कभी मेरी पसंद नापसंद उस से मिलतीं है. मुझमे मेरी माँ बसती है. कभी गुस्सा उसके जैसा होता है तौ कभी  मेरी हंसी मे वो हंसती है मुझमे मेरी माँ बस्ती he. अपना इतना कुछ दे चुकी वो मुझे कि मेरी सीरत उन जैसी लगती है. मुझमे मेरी माँ बसती है.

Category:Poem



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Written by archana saxena