थाली में मां

मां का प्यार

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03 Jun '24
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मन की भाषा जो पढ़ लेती है,

चेहरा देख दुखी कह देती है 

एक कह दो डाल देती है,

थाली में मां प्यार निढाल देती है   !

सुबह जो ख़ुशबू आंगन में महकती है,

मां को वो अनोखा कर्तव्य दिखता है !

मेरे हर कदम की वो खुशियां मांगती है, !

मां की परछाई सदा साथ चलती है !

मेरे दुख देख वो दुखी हो जाती है,

फ़िर धरा धिरज मुझे ख़ुश कर जाती है !

आसमां से जमीं का नाता है,

सच कहूं तो मां ही मेरी विधाता है !

दुनिया की परख कोई नहीं बता पाता है,

जो मीठी भाषा में मां बता देती है !

दुनिया से बराबरी का एहसास दिलाती है,

तू किसी से कमजोर नहीं साहस का पाठ पढ़ाती है 

छू कर मां के पांव निकलता हूं,

हर दिन अपनी दुनिया विश्वास से बदलता हूं !

दुख भी दूसरा द्वार ढूंढ लेता है,

मां की छत्रछाया जब मुझमें देख लेता है !

Category:Poem



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Written by Chandan Kumar

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