माँ

शिकायत

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15 May '24
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अपने दिल की बात तुमसे कह सकती हूँ क्या??
माँ, मैं तुमसे शिकायत कर सकती हूँ क्या?
मुझे अच्छा नहीं लगता
कई बार तुम पर गुस्सा भी आता है
जब तुम सबकी कड़वी बातें सुन 
मौन हो जाती हो ना 
तुम्हारा ये अंदाज़ मुझे नहीं भाता है
मुझे अच्छा नहीं लगता
कई बार तुम पर गुस्सा भी आता है….

कि तुम खुद चुप हो जाती हो
मुझे भी कुछ बोलने नहीं देती
कि एहसास मेरे सीने में दफन हो रहे हैं
तुम क्यों मुझे इन्हें खोलने नहीं देती
माँ, मैं जानती हूँ
तुम दिन रात बहुत मेहनत करती हो
लेकिन जब मैं तुम्हें आराम का कहती हूँ
तुम क्यों मेरी बात अनसुनी करती हो
मुझे तुम सा नहीं बनना 
ना ही चार दिवारी में कैद होना है
मैं अपनी फिक्र करना चाहती हूँ
अपना ख्याल रखना चाहती हूँ
मैं गर्व से कहना चाहती हूँ
ये घर....नहीं, नहीं,
इस पूरे घर में, एक ये मेरा कोना है
मुझे तुम सा नहीं बनना 
ना ही चार दिवारी में कैद होना है….

तुमने मुझे जन्म दिया
चिड़िया कह कर पंख भी दिए
अब सिर्फ एक आसमान की कमी है
उसे पूरा कर दो ना
मेरे मन में कुछ खालीपन रह गया है
उसे थोड़ा भर दो ना...
मैं सम्मान से जीना चाहती हूँ
जो शायद, तुम्हें नहीं मिला
तुम्हें वो सम्मान दिलाना चाहती हूँ
ज़िंदगी के इस सफर में
तुमने बहुत कुछ खोया है ना
तुम अपने सपने मुझे बताओ
मैं खुद के, और तुम्हारे...
दोनों के सपने पूरे करूँगी
लेकिन, मुझ पर थोड़ा भरोसा तो जताओ
तुम अपने सपने मुझे बताओ….

माँ, तुम लोगों की सुन कर
मुझसे वो आसमान की चादर मत खींचो
कि मुझे तुम्हारा साथ चाहिए
तुम अपनी मुट्ठी मत भींचो
तुम्हारी तारीफ भले ही ना लिखूँ
पर शिकायत ज़रूर लिखूँगी
फिलहाल तो ना सही, 
कभी भविष्य में, तुम्हें ये ज़रूर पढ़ाऊँगी
मैं जी भर कर बोलना चाहती हूँ
तुम्हारी आवाज़ बनना चाहती हूँ
मुझसे खुद से पहले किसी और से प्यार नहीं होगा
मैं सिर्फ खुद सी बनना चाहती हूँ
कहते हैं बेटियों के दो घर होते हैं
एक कोना काफी नहीं होगा, 
मुझे अपना एक घर बनाना है
ज़िंदगी एक बार ही मिलती है 
इसे जीने लायक बनाना है
तुम एक कदम बढ़ाना
मैं चार कदम चलने का वादा करती हूँ
माँ, मेरी शिकायतें दूर कर दो ना
अपनी दुनिया से मेरे ख्यालों तक का सफर, तय कर लो ना
तुमसे बस इतना माँग सकती हूँ क्या?
माँ, मैं तुमसे शिकायत कर सकती हूँ क्या?

 

 

Category:Poem



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Written by Palak

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