किरण राव द्वारा निर्देशित फिल्म लापता लेडीज फिल्म अपने नाम को पूर्ण रूप से सार्थक करती है। कहानी में दो लेडिस लापता होती है इसको तो दिखाई ही गया है। साथ ही साथ गांव में आज भी लेडिस अपने आप में लापता है इसका सजीव चित्रण किया गया है। देखा जाए तो गांव की क्या शहरो की भी कई औरतें अपने आप से अनजान है उनमें क्या प्रतिभा है वह क्या कर सकती है वह अपने स्वयं की क्षमता से अज्ञात है।
कहानी घूंघट से आरंभ होती है पुरानी प्रथाओं के चलते कई जगहों में घूंघट में ब्याह होते हैं ।घूंघट के कारण गिरते पड़ते दो दुल्हन बदल जाती है। जो दुल्हन पढ़ी लिखी होती है वह अपनी मंजिल प्राप्त कर लेती है ही साथ ही साथ दूसरी दुल्हन यानी फूल कुमारी को भी अपने गंतव्य तक पहुंचा देती है शिक्षित दुल्हन अपने आसपास के लोगों को भी मदद करती है वह जेठानी देवरानी के रिश्ते को संवाारती है अपनी जेठानी को चित्रकला में प्रोत्साहित कर खुश रहना हंसना सिखाती है। वह सास बहू को सहेली बनती है ।वह गांव के लोगों को कृषि के बारे में सुझाव देती है। महिलाओं की आत्मनिर्भरता शिक्षा का उपदेश देते हुए महिलाओं की मनोदशा का खूब सुंदर चित्र प्रस्तुत करती एक बेहतरीन फिल्म है।
घुंघट के नाम पर महिलाओ को संस्कारों का हवाला दिया जाता है । जिसमें उनकी कई योग्यताएं कलाएं उनकी प्रतिभा दबी रह जाती है। अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती रहती है।
मैं तो यही कहूंगी
चूल्हा चौका छोड़ ए रसोई घर की दीवानी
मर्दों को का पछाड़कर रच डाल नई कहानी।
कई शिक्षित महिलाएं भी अपने व्यक्तित्व को निखार नहीं पाई है तो यह फिल्म जरूर देखें और अपने दबे हुए व्यक्तित्व को उभारे।
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