अपनाओ स्वदेशी यही आस जगायेंगे
भारत वासियों को स्वयं की शुद्धता का विश्वास दिलाएंगे,
बन आत्मनिर्भर अपनाओ स्वदेशी यही आस जगायेंगे।
1)मन रखेंगे स्वदेशी विदेशी वस्तु पर ना बहकेंगे,
हर घर अब स्वदेशी वस्तु की सुगंध से महकेगें।
जन जन को अपने बाहुबल का विश्वास दिलाएंगे
बन आत्मनिर्भर अपनाओ स्वदेशी यही आस जगायेंगे।
2)अपने घर के आंगन की मिट्टी में अपना ही पौधा रोपेंगे,
हम अपनी मां लक्ष्मी को क्यों विदेशियों को सौंपेंगे।
धरती मां का कर्ज अपनी कर्मठता से चुकाएंगे।
बन आत्मनिर्भर अपनाओ स्वदेशी यही आस जगायेंगे ।
3)अपनाकर स्वदेशी ही देशभक्ति दिल से निभाएंगे,
लोकल को ग्लोबल बनाकर बाजार अपना दमकाएंगे।
अपने भारत की चमक अब सारे जहां को दिखलाएंगे।
बन आत्मनिर्भर अपनाओ स्वदेशी यही आस जगायेंगे।
4)हर उपभोग हर परिवेश को अब हम परिवर्तित कर देंगे,
विदेशी मोह को त्याग कर स्वदेश का मान रख देंगे।
भारत का परचम अब विश्व में लहराएंगे,
बन आत्मनिर्भर अपनाओ स्वदेशी यही आस जगायेंगे।
5)ब्रांडेड की गाथा छोड़ अपनी अकल लगाएंगे,
खाली जेब की कैद को तोड़ हम गर्व से सिर उठाएंगे।
हाथ बढ़ा कर अपना सब को साथ ले आएंगे,
बन आत्मनिर्भर अपनाओ स्वदेशी यही आस जगायेंगे।
6)बढ़ाकर किसानों को आगे उन्हें अब सक्षम बनाएंगे,
देख ले अब दुनिया सारी ऐसा कौशल दिखलाएंगे।
अपनी मिट्टी की खुशबू से सारा विश्व में महकाएंगे,
बन आत्मनिर्भर अपनाओ स्वदेशी यही आस जगायेंगे।
✍डा. शुभ्रा वार्ष्णेय