दर्पण में जिसका दिल बसता हैं,
मंजिल करीब उसका दिखता हैं !
हालात से लड़ने की क्षमता पाता हैं,
रोज़ ही वह स्वर्णिम युग बनाता हैं !
न भूत न भविष्य उसको दिखता हैं,
रोज़ ही सूरज की लाली सा पनपता हैं !
दर्पण में जिसका दिल बसता हैं,
मंजिल करीब उसका दिखता हैं !
पेड़ पौधा सरीखा ख़ुद को दृढ़ पाता हैं,
आंधी को भी अपनी औकात बताता हैं !
मरहम पट्टी नहीं मुहब्बत बाँटता हैं,
हर मुख मुस्कान को खूब लपेटता हैं !
दर्पण में जिसका दिल बसता हैं,
मंजिल करीब उसका दिखता हैं !
कहता हैं स्वर्णिम युग की शुरुआत हम हैं,
दुनिया को दिखाते दिपक हम हैं !
हमारी दिए की लौ से विहान होता हैं,
संसार सुंदरता का मुकुट पहनता हैं !
दर्पण में जिसका दिल बसता हैं,
मंजिल करीब उसका दिखता हैं !
दर्पण में जिसका दिल बसता हैं
मंजिल करीब उसका दिखता हैं !