स्वर्णिम युग बनाता हैं

मंजिल करीब

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26 Jul '24
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दर्पण में जिसका दिल बसता हैं,
मंजिल करीब उसका दिखता हैं !

हालात से लड़ने की क्षमता पाता हैं,
रोज़ ही वह स्वर्णिम युग बनाता हैं !

न भूत न भविष्य उसको दिखता हैं,
रोज़ ही सूरज की लाली सा पनपता हैं !

दर्पण में जिसका दिल बसता हैं,
मंजिल करीब उसका दिखता हैं !

पेड़ पौधा सरीखा ख़ुद को दृढ़ पाता हैं,
आंधी को भी अपनी औकात बताता हैं !

मरहम पट्टी नहीं मुहब्बत बाँटता हैं,
हर मुख मुस्कान को खूब लपेटता हैं !

दर्पण में जिसका दिल बसता हैं,
मंजिल करीब उसका दिखता हैं !

कहता हैं स्वर्णिम युग की शुरुआत हम हैं,
दुनिया को दिखाते दिपक हम हैं !

हमारी दिए की लौ से विहान होता हैं,
संसार सुंदरता का मुकुट पहनता हैं !

दर्पण में जिसका दिल बसता हैं,
मंजिल करीब उसका दिखता हैं  !
दर्पण में जिसका दिल बसता हैं 

मंजिल करीब उसका दिखता हैं !

Category:Poetry



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Written by Chandan Kumar

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