अभी कल ही तो मिले थे,
एक संगोष्ठी में…
वह आज भी नहीं बदली
बिल्कुल वैसी ही…
सुंदरता का नूतन रूप,
सलोनी भी और सयानी भी,
मैंने बुने थे सपने…
अपनी तरसती आंखों से,
बेइंतेहा मोहब्बत थी हम दोनों में।
लेकिन समय बदला…
उसे कोई और मिल गया,
आलीशान व्यक्तित्व वाला,
वो उसकी हो गई।
चाहत शाश्वत रही दिल में,
आज वो बड़ी लेखिका है,
मेरा भी नाम है इसी क्षेत्र में।
आमना सामना हो गया,
एक साहित्यिक आयोजन में
मुझे देखकर बिखरा दिए
वही मोती से भरे दांत,
मैं खो गया सपनो में…
बिखरी उन सुनहरी यादों में,
जहां मैं था और वो थी।
एक संकल्प थी था दोनों का,
जिसे मैंने तो निभाया आज तक।
वो भूल गई अपने वादे को,
बदल दिया इरादे को।
वो आज भी मुस्कुरा रही है
मैं निशब्द हूँ…लंबे समय से,
लगता है रहूंगा ताउम्र…
मैं इंतजार करता रह गया,
आज भी कर रहा हूँ…
और करता रहूंगा।
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