प्रेम हमारा साइंस फिक्शन था
ऑटो से चलते और कभी चांद पर बसने की बात होती तो कभी मंगल पे। इलेक्ट्रॉन के बॉन्ड में अपनी बॉन्डिंग ढूंढते और क्रिस्टल में अपनी पारदर्शिता। वो ऑक्सीजन थी; जिंदगी से भरपूर और मैं आवारा नाइट्रोजन। अजीब कॉम्बिनेशन: कभी नाइट्रस ऑक्साइड बनता और ठहाके लगाते तो कभी अमोनियम नाइट्रेट बनके विस्फोटक। सुंदरता में उनका स्केल ph 7 था और खुराफात में मैं हाइपरसोनिक। गैलेक्सी से भरी हुई आंखों में न जाने कितने सवाल थे और कहने को कुछ नही था।
तब जिंदगी रंगीन और शर्म ब्लैक एंड व्हाइट हुआ करती थी। उनका हाथ पकड़ने से पहले छुई मुई पर शोध किया गया। फूलो के बेंजीन और पत्तीओ के क्लोरोफिल पर जानकारी जुटाई। चिट्ठी में ब्लश की इमोजी डाली जाती। किशोर कुमार के गानों को रिप्ले करते हुए जिंदगी रिप्ले करने की बात करते। हम उन्हे सपनो को सच करने वाली मशीन के बारे में बताते और उनकी फैलती हुई आंखों में यूनिवर्स का एक्सपेंसेशन देखते। हम उनकी मुस्कुराहट की ग्रेविटी निकलते और वो हमारे निहारने की पोलराइजेशन की गणना करती।
प्यार में इंसान बावला हो जाता है, हम न्यूट्रिनो बन गए। दुनिया में मौजूद और दुनिया से ही कटे हुए। आवेश रहित लेकिन आवेश के घटक। और कही से भी आर पार गुजरने में सक्षम। हमे प्रेम पर शोध करना था, दुनिया हम पे शोध करने लगी। सर्किल को एक्सपेंड करो तो सीधी रेखा दिखती है। गोल गोल दुनिया हमे सीधी दिखने लगी।
फिर एक रोज फ्यूचर को जूम करके अलग अलग सेगमेंट प्रेम हमारा साइंस फिक्शन था सात भागो में बंट गई थी। सातों भाग में अलग अलग रोल थे। फिर आंखे बंद कर के खोला तो स्क्रीन सेवर में तुम मुस्कुरा रहे थे ❣️
हम हमेशा पृथ्वी के दो ध्रुवों की तरह रहे एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत जो कभी मिल नही सकते पर उनका होना जरूरी है संतुलन के लिए कभी मांगा ही नही एक दूसरे को एक दूसरे से ना ही ईश्वर से अब वो ही जाने उसने क्यों हमें एक दूसरे के इतना समांतर रख दिया जो साथ चल तो सकते हैं पर हाथ थाम कर नहीं