बरसों से हिले विश्वास की नींव में
जड़ देता है एक पत्थर मजबूती का
और धूल खाते खंडहरों में खड़ा हो जाता है
स्वप्नों का एक खूबसूरत महल
वे रेगिस्तान जो सदियों से जल रहे थे
ज़िन्दगी की तपती धूप में
उन पर छा जाती हैं मेघमालायें
और झूम कर बरस जाते हैं सावन
वे फूल जो मुरझा गए थे पतझड़ में
प्रेम के स्पर्श से फिर खिल गए
प्रेम हमेशा बारिश-सा नहीं होता
कभी-कभी ओस की बूंदों सा ठहर जाता है
पत्तों की नोक पर
वे होंठ जो मुस्कराना भूल गए थे
उन पर थिरक उठा मधुर हास
उनके कहकहे संगीत-से घुल गए
वासन्ती बयार के संग
वे आँखें जिनमें भय था संसार के
क्रूरतम कृत्यों के आघात का
चमक रही थीं नन्हें शिशुओं की
सरल , सुंदर चितवन सी
स्पर्श जिस देह को आशंकित कर देता था
किसी अनहोनी के डर से
वो खिल उठी ऋतुराज सी
प्रेम ने जब भी अभयदान दिया
आँखें मूंद समेट लेता है बाँहों में
सकारात्मकता, सम्मान और स्नेह से
भर देता है बरसों से रीता मन
नष्ट कर देता है सारे दुःख सारी पीड़ाएँ
मिटाकर सारे भय निर्भय कर देता है
प्रेम सच में बहुत कुछ देता है...।"