मखमली तृणा में ओस की बूंदे चीर वसन भुजाओं से लिपटा, वो सहसा किसी पुष्प को छूता है। नवल प्रभात मे वो किशोरी थिरकते पद घुंघरू सम.. वो अलंकार कानो का कपोलों को छूता है।
तालमेल श्वेत श्याम का अधरो पर कुसुम हर्ष है .. अंतस्थ तरंगे आरोह अवरोह में तन चंचल, पदो का व्योम स्पर्श है।
वो पहर विदित है .अब, क्षण भर विलंब नही देख मुख यू उसका अब, स्वालंब नहीं। प्रेमालिंगन में मौन प्रकृति,अब मधुर गुंजार हुआ.. यों तरु भी शिथिल थे,अब, मानो रक्त संचार हुआ।
अकारथ ऐश्वर्या भी,प्रेम के आगे . सर्व वेदना ,अश्रु का निस्तार हुआ। काम , मोह, प्रश्नचिन्ह.. मानो, प्रेमास्पर्श से हर ऐश्वर्या का विस्तार हुआ