ज़माने भर में घूमने से कुछ नहीं होता, कुछ देर रूककर सोचा करो, पिता ने तल्ख़ लहजे में कुछ समझाना चाहा.
रमेश ने दरवाजे को पैर से तेजी से बंद करते हुए बिना कुछ बोले पिता को उत्तर देते हुए घर से निकल गया.
रमेश अपने बेटे के उत्तर से संतुष्ट न हो कर आवेश में आ कर रमेश को गालियां देकर किसी तरह खुद को संतुष्ट किया. रमेश की माँ शीला को किचिन में समझते देर न लगी पति को समझाते हुए कहा-स्वय को सबसे ऊपर मत समझिये. पिता परिवार के हर सदस्य कर सहायक होता है. सब रिश्ते एक जिम्मेदारी हैं. इनको निभाना आसान है. अगर मनुष्य में अहंकार न हो.
इतना सुनने के बाद शीला के पति की पत्नी को सुनने की जिज्ञासा बढ़ गई. लेकिन शीला चुप हो गई
पति ने चुप्पी तोड़ते हुए पति के लहजे में कहा-उससे और क्या कहता?
शीला ने कहा- अहंकार कोई रिश्ता नहीं स्वीकार करता, एक पुरुष को कैसे पुत्र से कैसे बात करनी है, पुत्री से कैसे बात करनी है, पत्नी से कैसे बात करनी है, पिता से कैसे बात करनी है. माता से कैसे बात करनी है. मित्र से कैसे बात करनी है. कार्यस्थल पर किससे कैसे बात करनी हैँ. सुसराल में कैसे बात करनी है. रिश्तेदारों से कैसे बात करनी है. यह अवसर पर निर्भर करता है.
अवसर के महत्व को समझा करो. हर अवसर पर एक सा नहीं बोला जाता है.
अपने साथ न्याय करो. अपनी भूमिका को समझो, सहायक बनो, अहंकारी नहीं.
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